पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/७

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बाद इसके असिफुद्दौला का सौतेला भाई सआदतअली ख़ां ने सन १७६८ ई० में लखनऊ के तख़्त पर बैठकर १६ बरस तक ऐसी उत्तमता से राज्य किया कि उस के समान अवध के कोई नव्वाब में हुए हैं। इससे बहुतेरी इमारतें बनवाईं।

सन १८१४ई० में उस के मरनेपर उसका बेटा गाज़िउदोनहैदर लखनऊ के तख़ पर बैठा, इसने अपनों क़वर के अतिरिक्त और कुछ न बनवाया । सन् १८२२ ई० में उसे राजा की उपाधि मिली, तबसे नव्वाब वज़ीर का नाम भी मिट गया।

सन् १८२७ ई० में जब वह भरा तो उस का बेटा वसीरुद्दीन हैदर तख़ पर बैठा, परंतु विषयों और विलासी होने के कारण इसका नाम बहुत बदनाम हो गया था और "बादशाह के गुप्तचरित्र” नामक अंगरेजी पुस्तक में जो कुछ इस जवाब के विषय में लिखा है, वह शायद् ऋट न होगी ।"

जब सन १८३७ ई० में यह, निस्संतान मरा तो इसकी रंडी का लड़का मुन्ना जाने तख़्त पर बैठ गया, पर उस ( नासिरुद्दीनहैदर) की प्रधाना बेगम इस बात से बिगड़ गई और बहुत कुछ उद्योग करने नसीरुद्दीन हैदर का चचा नसीरउद्दौला गद्दी पर बैठा । गद्दी पर बैठते हो इसने अपना नाम महम्मदअलीशाह रक्खा,हुसेनाबाद का इमामबाड़ा इल्लीने बनवाया था।

किंतु जब चारही बरस राज्य करके वह मर गया तो सन् १८४१ ई० में उसका बेटा अमज़दअलीशाह तख्त पर बैठा । यह केवल अपनी कवर ही बनवा कर जब सनं १८४७ ई० में मरगया। तो उसके पुत्र जगप्रसिद्ध बिलासपरायणं नवाब वाजिदुअली शाह, लखनऊ के तल पर बैठे। ये ठुमरी के आविष्कारक हुए इन्होंने बहुतेरी इमारतों के अतिरिक्त ६ कैसरबाग !” नामक बड़ी भारी इमारत बनाई। जो अब शोचनीय दशा में है और कुछ बर्बाद कर दी गई है। इन्हें केवल अपनी १५०० सैगमों के साथ रासलील