पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(५)

आदि करने के और कुछ काम न था, इसलिये सन सल्तनत बिगड़ने लगी। फिर सन १८५७ के बलवे के उपलक्ष में इनके वज़ीर को नमकहरामी से ये कलकत्ते भेजे जाकर मटियावुर्ज' में नज़रबंद किए गए और अवध अंग्रेजी राज्य में मिलाया गया।

इस प्रकार वज़ीरअली और मुन्नाजान का नाम निकाल देने से लखनऊ के नौ नव्वाब हुए।

हमारा यह उपन्यास सन् १८२७ ई० के अप्रैल महीने से प्रारंभ होता है, जिस समय कि लखनऊ के तख़्त पर अत्यन्त विषयी नव्वाब नसीरुद्दीन हैदर था। यह उपन्यास हमने "बादशाह के गुप्तचरित्र नामक अंग्रेजी पुस्तक की कथा के आधार पर लिखा है । यह पुस्तक एक अंग्रेज़ की लिखी हुई हैं, जो नसीरुद्दीमहेंद्र के द्वार में रहता था और जिसने अपनी डायरी में उस समय (मंसीरुद्दीन हैदर) के चरित्र का खासा खाका खैचा है । यह अंगरेज़ साढे तीन एस तक शाही दरबार में रहा, इतने ही दिनों में इसे हे कुछ साल लिखा है, वह बड़ा अद्भुत है, और उसे वह लेखक अक्षर अक्षर सत्य बतलाता है वही डायरी पहिले पहिले सम् १८५५ में लंदन में छ्पी थी । इस पुस्तक में अंगरेज लेखक ने अपना नाम नहीं दिया है, इस लिये हम भी उसके नाम लिखने में असमर्थ हैं । बड़ा आश्चर्य तो यह है कि ऐसे स्वभाव के लोगों को भी जगदीश्वर इसने उच्च पद पर बैठाता है । अस्तु-शुचीनां श्रीमती गेह योगभ्रष्टोऽभिजायते

________

ग्रंथकार।