पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/७६

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क्या सारी 'अजायबुलमखलूकात' का जखीरा है ? | नाज़रीन यह जान चुके हैं कि हम्माम में दावात, कलम और कागज़ भौजूद थे और मेरे गुमनाम व पोशीदः मददगार का यह हुक्म भी था कि अगर मुझे किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो मैं बजरिये खत के उसे आगाह करू ! लेकिन अब तक मुझे किसी चीज़ की जरूरत नहीं पड़ीं थी कि जिनके वास्ते में उसे रंगीले मददगार को किसी किस्म की तकलीफ दें, लेकिन अब मैने यह सोचा कि यों चुपचाप जिन्दगी | बसर करने के बनिस्बत यह कहीं बेहतर होगा कि मैं उसके साथ खत किताबत शुरू कर दें और इस तरीके से वह लुत्फ उठाऊं, जो कि खत के जरिये हासिल हो सकता है । यह सोचकर दूसरे - दिन जब मैं गुसल करने के बास्ते हम्माम में गया तो मैंने अपने उस .' अजीब मददगार के नाम इस मज़बून का एक खत लिखा ।"

  • प्यारे, मेहरवन !
  • गो, अभी तक मैं तुम्हारी सूरत शकल या नाम से अगरह नहीं

हैं, और न यहीं जानता है कि तुम कौन हो और किस ग़रज़ से तुमने मुझे इस आराम के साथ यहां पर कैद किया है, लेकिन इतना मैं जरूर जानता हूं और मुझे अपनी इंसे जानकारी पर भरोसा है कि मैं अभी तक 'शाहीमहलसरा' की अजीथ वो गरीब भूलभुलैया से बाहर नहीं होने पाया हूँ । " मैं जहां तक खयाल करता हूँ, तुमको औरंत ही समझ रहा हूं, मर्द नहीं; क्यों कि मर्दो में इतनी हमदर्दी कहां, जितनी कि तुम मुझ बख्त पर ज़ाहिर कर रहे हो !

  • अगर मेरा ख्याल सही है और तुम वाकई औरत ही हो, तो

वह कौनसा सबब है, जिससे तुमने मुझे यहां पर रोक रक्खा हैं और अपना दीदार दिखलाना गैर मुनासिब समझा है ! क्या तुमने मुझे कोई खिलौना समझा है कि जिसके साथ यों खिलवाड़ कर रही हो, या तुम्हारी ईरादा कुछ और ही है, जिसके ज़ाहिर करने में शायद.. तुमको इतनो शर्म आते हैं,किं नकाब में अपना चेहरा,छिड़ाकर भी L. ' '