पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/७७

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  • इशाहीमहलसरा *

सुम मेरे सामने नहीं अतिौं ! भई, तुमने तो शर्म को भी अपनी श६ के आगे शर्मिन्दा कर दिया और उस नई कुलहिन की हया को भी वैया बना दिया, जो अपने दूल्हे के पास पहिले पहिले, बहुत ही धीरे धीरे नकाब से मुंह छिपाकर जाती है ! "लेकिन, खैर, यह तो बतलाओ कि तुम इतना हिजाब कब तक, फोगो और वह कौनसी सायत होगी, जब मुझे तुम्हारा दीदार मसीह होगा । अाखिर, फभो तो ऐसा दिन जरूर आवेगा कि तुम, - मुझसे किसी न किसी सूरत में जरूर मिलोगी। अमर साही, जैसा - कि मैं सोच रहा हूँ, तुम्हारा इरादा हो, तो फ़िर अब देर करने को छ जरूरत है। बस्स, झटपट चली आओ और जो कुछ चाहो, मुझसे अपनी खिदमत करालो ! मुझे तुम्हारे हुक्म में कभी कोई उद्ध न होगा, और मैं वही काम करूगा, जो तुम्हारी मर्जी के खिलाफ ने होगा । अध मैं उम्मीद करता हूं कि तुम मेरे लिखने पर गौर करोगी, और बहुत जल्द मुझे अपनी रुखसार खिलाओगी । .

  • मेरी इस शोखी को लिखावट को पढ़कर शायदै तुम मुझसे

इस किस्म की लिखावट का सबब पूछोगी, लेकिन तुम्हार उसे सवाल के पैश्तर क्या मैं तुमसे यह सवाल करना बेहतर नहीं सम- झता कि, जानेमनसलामत ! तुम्हारी शोखी वो नखरे के आगे मेरी शोखी निरी पोच वो नाचीज़ है। . * इरादा तो मेरा यही था कि इस ख़त को और बढ़ा कर लिखें |लेकिन नहीं, पहिले खत में ज़ियादह तुल की जरूरत मैने में समझो और यदुतसी बातों को दूसरे खत के लिये छोड़ दिया।. . -:

  • मैं उम्मीद करता है कि अब तुम शरारत को छोड़ और इन्सा- ।

नियत को जगह देकर ज़रूर' मुझसे मिलोगी, और अगर मिलने में अभी तुमको किसी किस्म की रुकावट होगी तो जवा देने में .. कोताही कभी न करेगी। " तुम्हारा कोई बवंख्छ ।” | गृ' यह कि इस मज़मून के खत को लिख कर मैं वहीं पर कुल