- लखनऊ की कब्र *
| दान में छोड़ आया और अपनी कोठरी में बांप्रख अफर किताब देखने लगद यह बात मैने सोच ली थी कि उस हम्माम में पहुंचने के • लिये कोई पोशीदा रास्ता और भी ज़रूर होगा, जिस रह से मेरा मददगार वहां पहुंचेगा और अगर वह चाहे तो मुझे कल वहीं पर अपने खेत का जवाब मिल जायगा । लेकिन बात कुछ और ही हुई, यानी वही मस्ती और बेहोशी पैदा करनेवाली खुशबू मेरी कोठरी में
- फैलने लगी । मैले हजार कोशिशें कीं और नाक में खडी लखें ठूसे,
- लेकिन सर्व वैफ़ायदे हुअा और मैं थोड़ी देर के लिये बेहोश होगया।
": फिर जब मैं होश में आया, उरू वक्त बेतूर दूसरे किस्म की खुशबू | कोठरी में भरी हुई थी और ताज़ा वो गरमागरम खाना मौजूद था। मैंने शौक से खाने की काबी को लाकर पलंग पुरं रख लिया और ज्योंही उसका ढकना उठाया, मेरी नजर उसमें रखे हुए एक खत पर पड़ी । यह देखकर मैने उसे बड़े शझसे उठा लिया और खाने के पैश्तर पहिले उसे पढ़लेना मुनासिब समझा ! वह ब्रत लिफाफे के अन्दर बंद था ओर.मुश्क की बू से इस कदर बसा हुआ था कि मेरा दिल फड़क उठा और मैने लिफाफे को तोड़कर उसे पढ़ना शुरू किया। उसका म्युजमूने यही था,- ... | 1. " जानेमनसुलामत !
- मुझे यह जानकर निहायत खुशी हासिल हुई कि भला वाद :
मुद्दत के आपने मुझे याद तो शिया ! मैं तो खुद चाहती थीं कि ञ्जर को खिदमत में चंद् सतरे लिखकर पेश करू, लेकिन जहेनसीब कि आपने बहुत जल्द मेरी खबर ली।
- * आपका यह सोचना बहुतही सही है कि आप बिल्फेले 'शाही-
..महलस' के अन्दरही हैं और आपसे मुंह छिपाकर आपकी मदद करने वाली एक नाचीज़ औरतं ही है !
- अंध रहा सिर्फ आपके इन दो सवालों को हल करना कि आप
कसे तक इस मुसीबत में मुवतिला रहेंगे और मैं कब आपकी कृदम: घोसी हासिल होगी ! इन सवालों के जवाब में श्रुतम्बर तौर पर मैं