पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/८०

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ष क कृ ॐ ... . तेरहवां बयान । मैने जौ में अपने, एक दिन यह सोचा कि, किस किस्म की बेहोशी को स्या से मुझे बेहोश करके तब वह 'रंगीली औरत यहाँ साना रखने आती है; तो अगर मैं उस बैहोशी की दवा का असर अपने ऊपर न होने दें तो मुमकिन है कि उसे मैं पकड़ सकें और यह ज्ञान संकू कि यह औरत कौन है और किस इरादे से यह मुझे यहां पर यो अदकाए हुए है; लेकिन यह क्योंकर मुमकिन हो कि मैं उस बेहोशी की दवा के असर से अपने तई बचा सकें ?

सोचते २. मैने यह तकच. निकाली कि या तो कम से कम

आधे घन्टे तक सॉस रोकने का मुहाविरा किया जाय, या किसी तरह उन ताकों में से किसी तक अपने तई पहुंचाया जाय, जिनमें से होकर इथा और उजाला अतिा है। लेकिन सांस रोकने का मुहावरा तो बहुत दिनों में, बड़ी मुश्किल से होगा, लेकिन उस ताक तक पहुंचना उतना मुश्किल नहीं है। हम्माम में कई तिपाइयाँ मैने देखी थीं; सो उन्हें मैं एक एक करके अपनी कोठरी में उठा लाया और एक मोटी रस्सी भी, जो वहाँ पर थी, लेाया। फिर मैंने एक तिपाई पर दूसरो, उसपर तीसरी, यहीं सिलसिलेवार कई तिपाइयां इकट्ठी की, और उनपर चढ़कर खुदा के फज़ल से मैं ताक तक पहुंच गया। ताक में लोहे के छड़ लगे हुए थे। उनमें से एक छड़ में मैंने वही रस्सी बांध दी और उसे जमीन तक लटकादी । इसे मैने इसी लिये लटकाया था कि जिससे आसानी से मैं नीचे कूद सकू।....... . " अलारज, इतना कर चुकने पर मैं ऊपर तक के पास बैठ गया और उस औरत का रास्ता देखने लगा, जो खाना लेकर आया करती थी उस खाक से मैने झाँक कर, दूसरी तरफ क्या है, यह बात जानो चाही, लेकिन मैं यह न जान सका, क्योंकि उस ताक की बनावट इस किस्म की थी कि उजाला और हवा तो उस रास्ते में आती थी, लेकिन यह पता नहीं लगता था कि उसके हर क्या है, और मज़-..