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लखनऊ की कब्र

बड़ा भारी लुटेरा कहा जाय तो बेजा न होगा।"

मैने कहा,–-“वह बड़ा शैतान है, क्योंकि उस रोज़ मैंने देखा कि वह बादशाह की नज़र बचा कर मोरछल-वालियों को तकता था। मेरी जानिब भी उसकी नज़र कई मर्तबः आई थी ।इसीसे मैं इस खिलवाड़ को पसन्द नहीं करता। क्योंकि अगर कलई खुल गई तो मेरे साथ तुम्हारी भी जान मुफ्त में जायगी।"

यह सुन कर वह खिलखिला पड़ी और कहने लगी,--अजी । साहव ! तुम्हरा किधर ख़याल है ? यह मैं जानती हूं कि सिर्फ वह इज्जाम ही नहीं बल्कि सभी अंगरेज़ छिपी छिपी नज़रों से हम लोगों को तकते थे, लेकिन इस किस्म की ताके झोंक से कुछ नहीं हो सकता क्योंकि जब तुमने खुद अपने तई श्राप त पहचान और दूसरी मोरकालवालियों ने भी तुम्हारे नकली मेष को न भूपा तो उन बंदरमुहों की या ताकत है कि तुम्हारे नकली भेष को तोड़ सकें । एस जब तक तुम यह हो, ज़िन्दगी का लुत्फ़ हासिङ करो । अजी हज़रत ! यह तो रात कामौका है। अगर कभी दिन के वककोई अनोखा जलसा । हुआ तो मैं बड़े मजमे में भी तुम्हें ले चलूगी और खुदा ने चाहा तो घेदाग बच कर खुशी खुशी लौट आऊगी !”

ग़रज़ यह कि इसी किस्म की बातें देर तक होती रहीं; बाद इसके वह उठी और कहने लगी,--लो दोस्त ! अब मैं इस वक्त तुमसे रुख़सत होती हैं । इस बात का मुझे निहायत अफ़सोस है कि मैं तुम्हें बराबर रोज़ही बेहोश किया करती हैं और इस वक्त भी तुम्हें बेहोश करके तब यहांसे जाऊँगी ।"

मैने कहा,--"लेकिन, इतनी होशियारी को क्या समय है?"

उसने कहा,--"सिर्फ यही कि जिसमें तुम किसी घला में न फंस जाओ।"

मैं--यह क्यों कर ?”

वह--“यों कि, अगर तुम मेरे आने जाने के रास्ते को देख लोगे