पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/९५

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तो ज़रूरतुम भी कभी न कभी उधर की तरफ कदम जरूर ही उठाओगे और ऐसा करने से तुम ऐसे खतरे में पड़ जाओगे कि जिसमें अनि क्या जोना कोई मुश्किल नहीं है। | मैं,--* अच्छा, मैं बगैर तुह्मारी मर्जी, उस जानिये को कभी कदम न उठाऊंगा।" * वंह, -4 इस पर मैं क्यों कर यकीन करू ? मैं, जिस तरह तुह्मारो दिल चाहे ।” बह,-* क्या तुम सच कहते हो ?” मैं---* हीं बल्कि कुरानश्रीफ़ की कसम खाकर कहता हूं कि तुह्मरे हुक्म बौर में इस तरफ कभी न जाऊंगा, जिधर जाने के लिए तुम मला करोगी !' | यह सुन कर वह उठी और मेरे पलंग के नीचे घुस गई । उसके घुसतेही एक खटके की आवाज़ मेरे कानों में सुनाई दी, जिसे सुन कर मैने झांक कर देखा तो वहां पर कोई न था और कुज बिलकुल बराबर थी । यह तमाशा देखकर मैं हैरान हो गया, लेकिन उससे औन्हें कुरान की कसम खाई थी, इसलिये मैने पलंग के नीचे झुस कर इस बात की जांच करना, कि वह क्यों कर वहां से गायव होई, मुनासिब न समझा । . .. .. ... बाद, मैं हम्माम में गया और वहांसे जब वापस आया, गरमागरम खाने को मौजूद पाया । मैं इस बात पर निहायत खुश था कि भला उस परीपैकर ने मेरा एतबार तो किया । | नाजरीन ! आप सच जानें कि यह औरत निहायत हसीन और खुशमिजाज थी और मेरे अंदाज़ से इसकी उम्र ऐह सोलह साल से ज़ियादह न थी। अगर मैं दिलाराम को अपना दिल न दें दिए होला तो इस माङ्गनी को ज़रूर अपनी माशूका बनाता, लेकिन इतने पर भी अगर वह दिलारामं से डाह न करेगी तो इसे मैं जरूर अपनी दिलरुबा बनाऊ । अभी देक इसके साथ मेरा सिर्फ बानी हो