पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/९६

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दिल्लगी का रिश्ता है और इससे ज़ियादह की ख्वाहिश मैने अभीतक कुछ भी इस पर ज़ाहिर नहीं की है। गो, यह नाज़नी भी मुझसे दिल्ली सुहब्बत करती है, लेकिन अभी तक इसने भी किसी किस्त की। ज़ियादती नहीं दिलाई है। किस्सह कोताह, मैं शाम होने से पेश्तरही अपने मामूली काम से फुर्सत पाकर पलंग पर लैदा हुअर कोई किताब देख रहा था और चाहता था कि कव वृह नाज़नी आवे कि उसकी मीठी मीठी बात। लज्ज़त उठाऊं। थोही जब अंधेरा हुआ और करीब एक घंटे के रात बीती होगी कि मेरे पलंग के नीचे से वैसीही खटके की आवाज़ आई और जब तक मैं उर्दू, वहीं नाज़नी पलंग के नीचे से निकलकर मेरे सामने खड़ी होगई और उसने कोठरी में चिराग रौशन करके मुझसे कहा, तुम चलने के लिये बिल्कुल तैयार हो ?” .. । मैने कहा- मैं तो बहुत देर से बैठा हु तुह्मारी राहू सके रहा । वह बोली,-" तो बिहतर है । आओ, पेश्तर हम तुम मिलकर .... खाना खा लें, तव चलें, क्योंकि मुझे यह मालूम होगया है कि आज बाद्शाह सलामत नौवजे के पेश्तर अपने खास जलसे में शुरीक न होंगे।” यह सुनकर मैं निहायत खुश हुआ और मैने हाथ बढ़ाकर उस। नज़नी को भी अपने बगलमें, पलंग पर बैठा लिया और बड़े शौकसे उसके साथ खानाःस्वार्यश् । आज बाद मुद्दत के, जबसे मैं इस शाहीसहलसरा के चकाबू में फसा हैं, निहायत लुफ्त के साथ खाना खाया।खाने के वक्त तरह तरह की दिल्लगी,मज़ाक और बातचीत से वह नाजुनी मुझे हसाला रही, तब मैंने उसकी लियाकत को समझा और जाना कि यह औरत वाकई इस काविळ है कि बादशाह की सोहबत में रह सके । उसकी बातों से मैवे जाना कि यह खूबही पड़ी लिखी, होशियार और तबियतदार औरत है और यह इस काबिल है कि नसीरुद्दीन जैसे ऐयाश और शौकीन बादशाह को अपने ताथै रख सके । .