पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/१०१

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  • शाहोमहवसरा*

तेरहवां परिच्छेद। दूसरे दिन जब मैं सोकर उठा और मामूली कामोंसे मैंने फुर्सत पाई तोदेखा कि लज़ीज होताजा खाना तैयार है!यह देख कर मैंनिहा. यत खुश हुओ और खुदा का शुक्रिअदा करके बड़े शोकले मैंने खाना खाया ! मारे भूख के पेट में चूहे उछल रहे थे, इसलिये मैंने खूब नाक तक ठुसकर खाना खाया और बाद इसके खशबदार पानी पीकर पेपर हाथ फेरने लगा। इसके बाद मैं खानेकी मेजके पाससे उठकर मलमके पोल गया, वहां आज मैंने एक नई बात देखी। यानी ताजा किया हुआ हुक्का रक्खा हुआ था और भरी हुई चिलम तयार थो । मैं सच कहरहा हूं कि जब मैं सोकर उठा था, उस वक्त बहापर हुक्का हर्गिज नथा, क्यों कि सोकर उठने के बाद, में मसनद पर आकर बैठा था, लेकिन जब मैं मासूली कामों से फुर्सत पाकर कमरेमें वापस आया था उस वक्त सिवा खानेकी मेजके मेरा खयाल किसी दुसरी तरफ नहीं गया था। यही वजह है कि मैंने हुक्कको नहीं देखा था। मैं जहां तक समझता हूं, हुका भी उसी वक्त ताज़ा करके रक्खा गया होगा, जब खाना लाया गया होगा! ___ यह एक नई बात थी,षयोंकि जबसे मैं महलसरा के अन्दर आया कै आज पहलाही मौका ऐसा आया है कि हुका मुझेनसीब हुआ है। गो, मुझे इसकी जियादह आदत नथी और न मैं इसका आदी था, बरन में खुद इसका उस वक्त आसानी से इन्तजाम कर सकता, जब मैं पुतलों वाली कोठरी में था और जहां पर मुझो हर एक पात का आराम था। खैर मैं,गो,हुक्के का शौकीन न था,लेकिन इससे मुझो कतई इन्कार भी न था, इसलिये दो चार कश मैंने शोक से लगाये और निहायत नफ़ीस और खुशब दार तम्बाकूने मेरादिल फड़कौंदिया ____कुछ देरतकतो मैं हुक्को गुडगुड़ाता रहा, फिर मझो शारत सूझी और उठकर मैं उस आलमारी के पास पहुंचा, जिसमें वह अजीब