पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/५

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  • शाही महलसरा * वह, ( कुडकर ) " बडे अफसोस का मुकाम है कि तेरो मौत तुझे भुतलक भूल गई है। "

मैं, - ऐसा ही मैं भी तेरो निस्बत सोचता हूं और ताज्जुघ करता हूं कि तुझ जैसी शैतान अब तक क्यों कर मलकुलमौत के निवाला होने से बच रही है ! " वह,-" मैं तेग खून पीये वगैर भला क्यों कर दुनियां से कूच कर सकती हूँ !" में,- लेकिन, आसमानी ! मेरा दुछ इरादाही और है ! यानी तेरे जिस्म में जईफी की वजह से खून के न रहने के सबब मैं तेरे खून का खांहां नहीं हूं, लेकिन इतनी तमसा मुझे जरूर है कि खुदा बह दिन मुझे जल्द दिखलाए कि में तेरी बारियों का जायशा चील सत्रो को चखा स! मेरी इस बात को सुनकर आसमानी शेरनी की तरह तड़प उठी और अपने हाथों को जार से सलकर कहने लगी,-कम्बख्त, तू यकीन रख कि तेरा आखिरी वक्त अब बहुत ही करीब है और बहुत जल्द तू मलकुल मौत को निकाला हुआ चाहता है।" यह सुन, मैं खिलखिला कर हंस पड़ा और बोला, नहीं, हर्गिज़न, ऐसा कभी न सकता कि मैं दुनियां से कूच करू और तू सही सलामत , लागती बरकरार रहे। वह कहने लगी,- " देखा जाएगा। मैंने कहा,-" का ६७ मा ?" वह-५-“ यही कि तू थोड़ी ही दर से गिरफ्तार होकर बादशाह के हर पेश किया जय मह । इस के बाद री जान एक संगदिलं केलाथ ली जायगी; करा इस पर तूने अब तक सुललक गौर नहीं किया है ! मैं,-"मैं ऐसी . और देवनग्राद पानीपर: सी पीर करता ही नहीं, और अगर ऐसा हो जायगा तो में खलो पाई।