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पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/५५

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  • शाहीमहलसरा* लाकर उसने यहां पर कैद न किया होता तो मैं यह ज़रूर सझना कि तुम उन दोनों नाज़नियों से अलग, यानी तीसरी हो! लेकिन नहीं,अब मैंने बखबी इस बातको समझ लिया कि वह नकाबपोश औरत भी आपही थीं,जिसने मुझे सात नंबरवाली कोठरी में जद करने का हुक्म हवशी गुलाम को दिया था। ओहो ! एक बात में तो मैंने बड़ा भारी धोखा खाया। यानी उस पुतलेवाती कोठरी में अबतुम मुझसे मिली थी और तुमने अपने तई उस औरत का दोस्त बतलाया था,जो कि मुझे उस जगह पर आराम से रखे हुई थी और यह भी कहा था कि, "मैं उसके कहने से तुम्हें महलसरो से बाहर करने आई हूं, लेकिन फिर थोड़ी ही देरबाद तुमने यह कहा कि-'मेरी मुलाकात उस औरतसे नहीं हुई और न मैं उसकी भेजो हुई यहां आई हूं लेकिन मेरा फर्ज है कि मैं तुमको महल के बाहर पहुंचा कर उस ( अपनी दोस्त) की जान बचाकं ।' मेरे इस कहने का मतलब सिर्फ यही है कि उस वक्त तुमने इसी किस्म की बाते की थी, लेकिन दिल की घबराहट के सबब उस वक्त मैं बद हवास होरहा था इस लिये तुमसे इस झूट बोलने का सबब पूछ न सका था। मगर बात यह है कि मैं अस वक्त अगर यह तुमसे पूछता भी तो इससे कोई फायदा नहीं होता, क्योंकि मैं हर तरहसे तुम्हारे कबजे में था ।"

इतना सुनकर बसने खाने से कहा,-"मगर अवतोमतु आज़ाद होगये न , __ मैंने कहा, “यह तनज रहने दो और सुनो; इतना मैं जरूर कहूंगा कि तुम बड़ी चालाक औरत है। और झूठ बोलना तो गोया तुम्हारा एक महज़ मामूली काम है। " उसने कहा,-फ़र्ज करोकि अब तक जो कुछ तुम धक गये, घर बिल्कुल सही है, लेकिन इससे तुम को फायदा क्या हुआ मैंने कहा,--"यही कि तुम्हें मैंने झूठा साबित कर दिया ।" वह बोला, "लेकिन इसके सावित करने से तुम मेरा क्या कर