पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/५९

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शाहीमदासरा इस दीविर का पत्थर ज़मीनके अन्दर घुस गया। सामने एक जुरंगा नज़र आई,जिसके अन्दर वह गुलाम मुझे घलौट लेगयों ओर पीछे से वे दोनों औरते भी हाथों में मशाल लिए पहुंची। रौशनी के उजाले में मैंने देखा कि वह सुरंग पांच हाथ लम्बी चौड़ी और ऊंची थी और उसके एक तरफ एक कदआदम लोहे का पुतला बना हुआ था । गरज़ यह कि मुझे उस पुतले को दिखला कर आसमानी ने अयब से कहा, हो, जल्द इस पुतले के ताले में वाली भर दे । - इतना सुनते ही अय बने उस पुतलेले दोहाथ दरही पर,जमीन में बिछे हुए एक पत्थर के सूराख में ताली लगाकर सात दफ़ धुमाई. फिर निकाल ली। अल्लाह, अय यह क्या गजब !आह मैं क्या देखता हूं कि भई से उस पुतले के जिस्म में से निकल निकल कर हज़ारों खञ्जर बड़ीतेजी के साथ चक्कर लगाने लगे और यही जान पड़ने लगा कि इस पुतले का सारा जिस्म लिर्फ खञ्जरों ही से बना हुआ है !!! आह, गज़ब ! इस अजीब तमाशे को देखकर मेरे होश हवास आते रहे और कलेजा हाथों उछलने लगा। मेरे सारे बदन का खून सूखकर जम गया और तमाम नदन से पसीने की बंदें टपकने लगी। किस्सह कोताह, उस खञ्जर वाले पुनले को दिखला कर उस नकली दिलाराम ने मुझ से कहा,- देख, यूसुफ ! यह कैला उम्दः पुतला है ? सुन कम्बल ! अब तू इसी पुनले से बांधा जायगा, एसके बाद जब इसके ताले में ताली भरी जायगो तो ये सारे खञ्जर इसी तरह तेजी के साथ घमकर तेरी वाठियोंके टुकड़े टुकड़े उद्घाएगे और बड़ी तकलीफ़ के साथ तेरी जान निकलेगी । अल्लाह, अल्लाह, अय पाक पर्वरदिगार, तू कहां है ? आह, अब मैं मरा! यों कहकर मैं। तुरनगश खाकर वहीं गिर गया और फिर मुझे इस बात की कुछ भी खबर न रही कि क्या हुआ!!!