पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/६०

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  • लखनऊ को कम्र आठवां परिच्छेद

मैं जब होश आया, अपने तई एक उम्दः सजे लजाए कमरे से छपरस्टार, पखरली तेशक पर सोए हुए पाया । वह कमरा खूब लम्बा चाहा तो न था, लेकिन बहुत छोटा भी न था । वह बारह हाथ लम्बा, आठ हाथ जोड़ा,करीब आठ हाथ के ऊंचा और पुख्तः बना हुआ था। उसकी लम्बाई की सतह में दोनों तरफ पांच पांच दरवाजे और चौडाई की सतह में दोनों तरफ तीन तीन दरवाज़े थे। यह कमरा निहायत तबीयतदारी के साथ सूफ़ियाने ढङ्ग से लज़ा हुआ था। जीवन में कालील का फर्रा था; एक जालिब को मापनद बिछी हुई धीर एकताकघरखर था, जिस पर लै साया हुआ था। सखर पर गुदगुदा मलमली भड़ा विधा हआ था जिन पर रेशमी चांदनी थी और तकिए, लोमखमला , जिन पर रे साडी गिलाफ़ चढ़े हुए थे। कमरे में, जावा, करीने से तिपाइयों पर खिलौने, इतरदान पानदान शराब की बोलले और प्याले पानी की शाही और गिलास और चौसर, शतरज, गजी वाहू लाए और एक तर विल्लीरी फालसोमवती जल रही थी। इस अजीब टाउक्षा देखकर मैं दंग है। गया और घबराइट में आकर पलंग पर बेटा हलाया ! मैं नजर दौड़ा कर कमरे के चारों तरफ गौर से देखने लगा, लेकिन जिन चीज़ की मैं तलाश कर रहा थे।, इसका उस कमरे में कहीं नामोनिशान भी न था । मातुन हो कि मैं जाने से पौक रखना था। सो मैंने चाहा कि अगर यहांप: सितार या बीनता उले बजाऊ और कुछ अलाप: लेकिन, इस शिस्त्र की कोई कदीज उल कमरे में थी, जिसको गाने बजाने से किसी किस्म का ताल्लुक हा! जाखिमैं पलंगा सेबीचे उतार रहल सह कार कमरे कैफियत देखने लगा । उस कमरे में जो सतह दर जो थे, वे राव बेणुकीमत लकड़ी के बने हुए थे, और सबके साथ बाहर से बन्द थे ! ने हर एक दरवाजे