पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/७७

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'शाहीमहल सस ऐसा ह कि तुम नकली जोहरा को आसानी से गिरफ्तार कर सकोगी लेकिन मलका के सामने मैं आपसे हर्गिज़ न घोलंगी, इस लिये उस वक्त तुम भी खामोश रहना, और इस रोज़ को हर्षिज़ उस पर जाहिर न करना, वरन, बहुत बुरा होगा। ले। अब 'लपज आप' छोड़ कर निहायत शीरी 'तुम' बाले सिलसिले को जारी करती है। उसकी बात सुनकर मैं निहायत खुश हुआ और इसलिये कि तनहाई की हालत में एक खूबसूरत नाज़नी से दोस्ती का हालाना मैंने गनीमत समझी। बाद इसके मैंने उसका हाथ बँधकर अपने बर्गर पलंग पर दैठा लिया और चाहा कि उसे गले लगाकर अपने जले हुय. दिलको कुछ ठंडा करूं, लेकिन उसने मेरा हाथ रूपका और ज़रा त्योरी बदल कर कहा,-- सुनो भई, मुहब्बत के दर्मियान इतनी जल्दी ठीक नहीं, क्योंकि अभी तुम मुझे और मैं तुम्हें बजबी दोस्ती की तराज में तौलले और पूरा पूरा एकरार करलें, तब जो कुछ हानाहा, सोहो ! क्योंकि मर्द ही जात निहायत एहसान फरामोश होती है, वह जहां उसका मतलब पूरा हुआ कि फिर वह लालची भौरे के मिसाल नई कली कीबोज में दीवाला हो जाता है और अधखिली, या रसलूटी हुई कली की फिर कुछ पर्वा नहीं करता। मैंने कहा,--" ही, यह तुम्हारा सोचना बहुत सही है, और जिस तरह तुम चाहो सुह आजमा ले और अपना दिल भर ले । मैं हर तरह से तुम्हारी दिलजमाई कर देने के लिये तैयार हूं।" उसने कहा,-- खैर तो सुनो, पहिले तो असल बात यह है कि तुम मुझसे रंडी का सा सरोकार रक्जा चाहते हो, या मुझे अपनी बीबी बनाने की शाहिश रखते है। १. मैं, नहीं,रंडी से सरोकार रखना शराफ़त बईद है, इसलिये मैं शर। के बमूजिय निकाह पढ़वा कर तुम्हें अपनी बीवी बनाऊंगा।" वहा-बेहतर, मैंभी यही चाहती हूं लेकिन इसमें कई बातें जो