पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/९३

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  • शाहीमहलसरा उसने कहा,-- यही सच है कि तुम्हारे इम्तहान लेने की नीयत से ही मैंने पेश्तर यह जमला न कहकर बातों का सिलसिला शुरू कर दिया था "

इसके बाद उसने वह जुमला कहा, जिससे मैंने जाना कि वह असली है, नकली नहीं। यह जान कर मैंने कहा,-~ल्यों, बीबी खाना रखने जब तुम आई थी, तब तो तुमने अच्छी तेतिवमी जाहिर की थी। यह सुन कर वह जराला मुस्कुराई और कहने लगी, आखिर क्या करती! अगर मैं जरा भी तुमसे नज़र मिलाती तो मेरा दिल मेरे कबजे में न रहता और शायद तुम भी मुझसे कुछ छेड़ छाड़ करने लग जाते, लेकिन वह मौका ऐसा न था कि उस वक्त कुछ दिल्लगी मजाक किया जाता; क्योंकि बेगम यहां आनेके लिये तैयार थीं। यही वजह है कि इस धक मैंने अपने नन्हे से कलेजे पर मिल रखकर उस वक्त तुम्हारी तरफ नज़र नहीं की थी! लेकिन, प्यारे यूसुफ़ ! मैं इस बात से निहायत खुश हुई कि तुम ने उस वक्त अपने कोल बमुजिब मुझसे एक भी बात न की और जब मैं छेगम की खुलाई हुई आई थी उस वक्त भी तुम नै मेरी सरफ निगाह नहीं डाली थी। __ मैंने कहा, आखिर, मुझे अपने कौलोकरार और तुम्हारी मुहब्बत का भी तो पूरा पूरा.खयाल है !"

____वह,-"ठीक है, तुम्हारी इसी दियानतदारी पर तो मैं हज़ार जान से फ़िदा हो रही हूं।"

मैं- अन. देर क्यों कर रही हो! आओ. यहाँ से निकाल चलें और जिंदगी व जवानी का मजा चखें। उसने कहा, "दुरुस्त है, मैं उसका पूरा पूरा इन्तजाम कर चुकी हूं और खुदा ने चाहा तो आजही शव को यहां से तुम्हें अपने इमराह लेकर भाग चलूंगी। - इतना सुनते ही मैंने जोश में आकर से ज़ोर से मनसद