पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/९७

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  • शाहीमहलसग * क्योंकि इतना मैंने बगैर वेगमके बतलाएही जान लियाथा कि हो न हो, इस घड़ी का तार वेगम के ख़ास कमरे में लगा हो! पस ऐलोही एक घड़ी वहांभी मौजद हो, और इसमें हिकमत यह रक्खी गई हो कि यहां की सूई घुमाने से वहां की घड़ी की घंटी बजती है। और वहां की सूई धुमाने से यहां की घंटी।

किस्सह कोताह, अपने दिल ही दिल में उस घड़ी की हिकमत को सही या ग़लत, जो कुछ हो, समझ कर मैं उस कमरे में टहलने लगा और दिलही दिलमें यह कहने लगा कि देखें अब इस सूई के घुमाने का क्या नतीजा निकलता है!!! S JEANS VARAN