पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/९९

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  • शाहीमहलसरा* लेकिन अफ़सोस, वह भी अभी तक न आई, जिसने पास ही मुझे लेकर यहां से भागनेका पक्का इरादा मेरे सामने जाहिर किया था !

मैं बहुत देरतक जागा किया, लेकिन उन दोनों मानियों में से अब एक भी न भाई और मुझेमो नीदने वेतरह सताया तो मैं लाचार हो, पलंग पर जाकर सो रहा और जर भरपूर नींद ले लेने पर मेरी नौद खुली तो उस बक, दिन, मामूली से बहुत ज़ियादह चढ़ आया था। मैं झर पट मामूठो कोमोसे फुल पाकर कमरे में टहलने लगा और देर तक चहलकदमी करता रहा, लेकिन उन दोनों में से किसी को सूरत नज़र न अपई । आह, तर तो मैं अफसोस कर और हाथ मल कर रह गया, लेकिन कोई न आया! मुझे उम्मीद कारिलथी कि चाहे वेगम नाराज के सबब यहाँ विल्केल मवे,लेकिन उसकी होडीतो खानापहुंचाने जरूरही आयगी, लेकिन नहीं,धनी म आई और उसकी राह तकते तकते दोपहर गुजर गया । उसक मुझे सूख शिदनकी लपीहुई थी, इसलिये मैं उस संदलौ तिपाई की तरफ बढ़ा, जिन पर मेवे और भाराध की सुराही रक्खी हुई थी लेकिन अफसोस, उनमें मेवे का एक दाना और शाकी १० बृद भी न थी। यह देखकर मैंने दिल हो दिल में यह तलौवर किरा कि सुपकिन है कि कल नशेके आलम में मैंने ही कुल मेवे वो शराय खा पी डाली होगी। इसके बाद मैं पानीको सुमही के पास गया मगरवहमी खालीथीं और उसमेभी एकबद पानी का सामनाया खुदा ! इस नजनित्रों প্ৰৰ ৰান্ধী মা। বয়ঃীৰ বারণ হট ৪া জাবিল স্থানঃ से खुदा यावे कि ये जालो बोनसे इस कदर आँखें बदल सैनी हैं कि जिसका दिल से प्या करें, उसी के खूरके पीने के चार तैयार हो जाती हैं । अफसोस ! कहां इस कदर मुरवन मि छोडकर जापान कहो; और कहां एपी वेधक अब जाते सुपरवानी सई घुमा देने ने मैं अब बगैर शेडाने के मारा जाता हूँ !