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पृष्ठ:लवंगलता.djvu/३०

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परिच्छेद
२७
आदर्शवाला।

लिये है !"

नजीर—"हुजूर! मैं तो यह समझता हूं कि हज़रत के दिल ने फिर कहीं किसके दामे-उल्फ़त मे अपने तई उलझाया है!"

सिराजुद्दौला,—(मुस्कुराकर) "वल्लाह, तुमने क्या खब समझा है!

नज़ीर,—" सरकार! मैं तो समझता हूं कि जो कुछ मैंने सोचा है, वह बिल्कुल सही है।

सिराजुद्दौला,—"फ़र्ज़ कर्दम, कि, तुम्हारा ख़याल बिल्कुल सही है मगर जब कि तुम उस राज़ को सुनोगे तो हैरान होगे और यही कहोगे कि बेशक यह मर्ज़ लाइलाज है।"

नज़ीर,—"हुजूर बजा फ़रमाते है, मगर गुलाम तो यो समझता है कि दुनियां मे कोई भी मर्ज़ लाइलाज नहीं, अगर फ़ौरन उसका इलाज किसी अच्छे हकीम से कराया जाय।”

सिराजुद्दौला,—"देखना ही तो है कि तुम्हारी हिक्मत-अमली इस अमरमे अपना कैसा जौहर दिखलाती है!"

नज़ीर,—"अच्छा, पेश्तर हुजूर उस बात को ज़ाहिर तो करे!"

इतना सुनकर सिराजुद्दौला ने वह तस्वीर, जिसे वह घटों से देखरहा था, नज़ीरखां के आगे सरकादी और कहा,—"अब भला तुम्हीं बतलाओ कि मेरा दिल क्योकर बेहाथ न हो!"

नज़ीर,—(उस तस्वीर को बगौर देखकर)" अल्लाह-आलम! क्या इस कदर खूबसूरती भी, जो परिस्तान में भी शायद नसीब न होगी, इन्सान मे होसकती है!"

सिराजुद्दौला,—"जिस परीजमाल को खुदा ने अपने हाथो से बनाया है, उसमे इस कद्र खूबसूरती का होना कोई ताज्जुव का मकाम नहीं!

नज़ीर, बजा इर्शाद, लेकिन, यो हुजूर! यह किस परी-पैकर की तस्वीर है?"

सिराजुद्दौला,—"इसकी पुश्तपर लिखा है, पढ़लो।" यह सुन, उस तस्वोर को उलटकर नज़ीरखां ने देखा और जो कुछ उस पर लिखा था, उसे पढ़कर कहा, हुजर! ऐसी खूबरू नाज़नी तो बन्दै ने आज तक कहीं नहीं देखी थी।