सूरत है, वैसी ही तस्वीरें भी इनके पास है। ह ह ह ह!!"
लवंग॰—"कुंदन! खुटाई न कर चुप रह।"
बुढ़िया—"देखिए न सरकार! यहाकी बादियो को ज़रा सलोका नही है। मैं एक मनच. नव्याब सिराजुद्दौला के महल में तस्वीर बेचने गई थी मगर माशा अल्लाह! कैसी लईक और शाइस्तः बांदियां वहां की थीं कि जैसी किसी बड़े घराने की बहू बेटियां भी न होगी!"
कुन्दन—"बम चुप रह! देर बड बड न कर! अगर तस्वीर दिखलाना हो तो दिखला, नहीं तो अपनी राह नाप!"
लवंग॰—"कुन्दन! तू न मानेगी।"
कुन्दन,—रानी बीबी! आप नही सुनतीं. कि यह बड़े बड़े घरों की बहू-बेटियों को क्या कह गई!"
लवंग॰—"बूढी! तुम इस पगली की बातों का ख़याल न करो और जो तस्वीरें तुम्हारे पास हो, उन्हे दिखलाओ।"
इतना सुनकर बुढ़िया ने एक छोटा सा डब्बा खोला और उसमे से हाथीदान पर बनी हुई तस्वीरे निकाल निकाल कर एक एक करके लवंगलता के सामने वह रखने लगी और बोली,—
"लीजिए, देखिए,—यह बंगाले के अव्वल नव्वाब बख्तियार खिलजी की तस्वीर है। यह ग़यासुद्दीन की, यह सुगनखां की, यह तुगग्लखां की, यह नामिरुद्दीन की यह कैकयम की, यह फ़ीरोज़- शाह की, यह शहाबुद्दीन की, यह नासिरुद्दीन की, यह बहादुरशाह की. यह बहरामखां की, यह फक़ीरुद्दीन की, यह मुज़फ़्फ़रगाजी की, यह मग़सुद्दीन की यह लिकदग्शाह की, यह ग़यासुद्दीन की, यह जलालुद्दीन मुहम्मद की, यह अहमदशाह की, यह नासिरुद्दीन की, यह वब्बर शाह की, यह गुलामअली की, यह सैय्यद अलाउद्दीन हबशी की, यह नशरत शाह की, यह महमूदशाह की, यह शेरशाह की यह सुलेमान की, यह वारिदशाह की, यह दायूदखां की, यह हुसेनकुली खां को,यह मुजफ्फर खां की,यह कुतुबखां की,यह जहांगीर- कुलीखांकी, यह शेख इस्लामख़ा की,यह कासिमख़ांकी, यह इबराहीम खां की, यह शाहजहां की, यह कासिम खांकी, यह इसलामख़ांमस- हदी की. यह शाहशुजाअ की, यह मीरजुमला की, यह शाइश्ताखां की, यह इबराहीम की, यह मुर्शिदकुली खां की, यह सर्फराज खां"