पृष्ठ:लालारुख़.djvu/१०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चतुरसेन की कहानियाँ क्यों सुप्राप्त यौवन को छोड़ ? यह धन राजसत्ता फिर किस काम आवेगी ? अन्ततः हमारा राजापन किस योग्य होगा? पूर्वकाल के राजागण युद्ध करते थे; जीवन, मृत्यु सदा उनके सम्मुख थी। देश के चुने हुए विद्वान उनके मन्त्री सदा उनके पास रहते थे। अब यह सब काम तो प्रबल प्रतापी हमारी दयालु सरकार कर रही है, हमें छुट्टी है। इस जीवन भर के अवकाश में यदि हम जी भर कर यौवन और भोग को, जो धन से प्राप्त हो सकता है, न भोगे तो हमारे बराबर अहमक कौन ? वह वेश्या है, वेश्या रहे; यह बात उसे समझ रखनी चाहिए। वह स्त्री नहीं बनी रह सकती, पुरुष से स्त्री को जो प्रतिदान वास्तव में मिलना चाहिए, वह उसे नहीं मिलेगा। जब तक वह यौवन के उभार पर है, वह मेरी है, मेरा सारा राज्य उसके पैरों में है। इसके बाद ? इसके बाद भी चिन्ता क्या है ? वह इतना सञ्चित कर लेगी कि जन्म भर को काफी होगा। 9 ६ नख-शिख से शृंगार किए वेश्या के सामने आँख के अन्धे और गाँठ के पूरे बेवफूफ और औरत नौजवान कुत्ते दुम हिला-हिला कर जो प्रेम और आदर प्रकट करते हैं, वही क्या वेश्या का सम्मान है ? वेश्या की असलियत तो उसके 'वेश्या' शब्द में ही है। वह रजील, अछूत और भले घर की बहू हु-बेटियों के देखने की बस्तु भी तो नहीं। वे शरीफजादे रईस और राजा, जो समय पर जूतियाँ उठाते और जूतियाँ खाते हैं-यह तो