पृष्ठ:लालारुख़.djvu/१०५

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पतिता ra तेरा नाम रट रहे हैं। मेरा शृङ्गार हुआ, जड़ाऊ गहने, जरी को पेश्वाज, मोतियों के दस्त-बन्द और जड़ाऊ पेटी कस कर, इन और सेण्ट से तर-बतर हो, पाउडर से लैप हो दो पैग चढ़ा कर मैं छमाछम करती महफिल में पहुँची। मैं क्या पहुँची, बिजली गिरी-लोग तड़क गए ! हाय-हाय से महफिल गूंज गई, महा- राज पागल हो रहे थे और दोस्त लोग उछल रहे थे। फूलों के गुलदस्ते मुझ पर बरस रहे थे, वाह-वाह का तार बँधा था। क्षरण-क्षण पर हरी, लाल, नीली बिजली की रौशनी पड़ कर मुझे अमूर्त मूर्ति बना रही थी। पर मेरा सिर दर्द से फटा जाता था, और जी मिचला रहा था, पर मैं मुस्करा कर छमाछम नाच रही थी। कहरवे की ठुमकी लेकर मैंने विहाग का एक टप्पा छेड़ा, साज़िन्दे उसे ले उड़े। महफ़िल में सकते की हालत हो रही थी, तालियों की गड़गड़ाहट की हद न थी, नोट और गिन्नियों का मेंह बरस गया, पर मैं मानों मूच्छित होने लगी, मुझे के आने लगी थी और मैं अपने को अब क्रावू न कर सकती थी। मैंने रौशनी वाले को आँख से एक सङ्केत किया। एक बार झुक कर महफिल को सलाम किया और मागी। मह- फ्रिज में तालियाँ गड़गड़ा रही थीं। 'वन्स मोर का शोर आस. भान को चीरे डालता था। उधर म एक जोर की कै करके बेहोश हो गई थी। । मैं कब तक उस दशा में पड़ी रही, नहीं कह सकती। किसी ने झकझोर कर जगाया। आँख खोल कर देखा, हीरा है। ७