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पृष्ठ:लालारुख़.djvu/११

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लालाहख अपनी भेजा ह लाल हो गया। उसने और अर्ज की कि कश्मीर से बुखारे के नामवर शाहजादे ने कनखियों से अपनी एक सखी की ओर देखा, और फिर मुस्कुराकर बीणा के झंकृत स्वर में कहा : क्या वह सिर्फ "नहीं हुजूर, वह एक नामी शायर भी है, और उसकी "क्या कह सकते हो कि शाहजादे के साथ उसके किस प्रकार 'जी हाँ हुजूर, उन्होंने लिखा है कि मैं अपने जिगरी दोस्त हुई, अपने अज्ञात यौवन से बिल्कुल बेखबर हो कर, सहचरियों से सुरम्य कश्मीर की सुबमा का बखान सुन रही थी। महलसरा के खोजा दारोगा ने सामने आकर कोनिश की, हुजूर शाहजादी की खिदमत में एक नामी गवैए को और वह ड्योढ़ियों पर हाजिर होकर कदमबोसी की इजाजत से सरफराज होना चाहता है।' 'लाल रुख का चेहरा शर्म कविता की भी वैसी ही धूम है, जैसी उसके गान की ।' 'क्या वह बुखारे का वाशिंदा है ।। 'नहीं हुजूर, वह कश्मीर का रहने वाला है। वह एक कम- सिन खूबसूरत और निहायत बाश्रदम नौजवान है।' 'शाइजादी ने एक बार दारोगा की तरफ देखा, और पूछा के ताल्लुकात है।' जी हाँ, तहकीकात से आलम हुआ कि के साथ इस नौजवान के बिलकुल दोस्ताना ताल्लुकात है।' 'क्या शाहजादे ने कुछ तकीद भो लिख भेजी है।" गवैया है। हजरत शाहजादे ब्राहीम को शाहजादी का इस्तकबाल करने और उन्हें गाने 1