पृष्ठ:लालारुख़.djvu/१२

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चतुरसेन की कहानियाँ तथा कविता से खुश करने को भेजता हूँ। शाहजादी को उनसे पर्दा करने की जरूरत नहीं।' शाहजादी नीची नजर करके मुस्किराई, और धीमे स्वर से कहा 'बहुत स्वब' शाहजादेके दोस्त का हर तरह आराम से रहने का इतिजाम कर दो।' इतना कहकर वह जल्दी से ख्वाबगाह में चली गई, और ख्वाजा सरा कौर्निश करके बाहर आया। ३ कहीं बदली छा रही थी। कश्मीर की घाटियों में लालारुख की छावनी पड़ी थी। चारों तरफ सुहावने दृश्य थे। दूर पर्वत श्रेणियाँ शोभा बखेर रहीं थीं। चाँदनी छिटकी थी, और वह बदली में छन छनकर धरती पर बिखर रही थी। लालारुख ने सुना, कोई वीणा के मधुर झंकार के साथ वीणा विनिंदित स्वर में मस्ताना गीत गा रहा है। उस प्रशांत रात्रि में उस सुम- धुर गायन और उसके प्रेम भावना पूर्ण शब्दों से लालारुख प्रभावित हो गई। उसने प्रधान दासी को बुलाकर कहा "कौन गा रहा है। "वही कश्मीरी कवि है ॥ "बड़ा प्यारा गीत है।" "और वह गायक उससे भी ज्यादा प्यारा है।" "क्या वह बहुत खूबसूरत है।" "मगर हुजूर के तलुओं योग्य भी नहीं।" "लालारुख मुस्किराई। उसने कहा "किसी को भेजकर उसे कहला दो, जरा नजदीक आकर गावे"