पृष्ठ:लालारुख़.djvu/४२

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चतुरसेन की कहानियाँ "ससी दिन बादशाह और बेगम दोनों को गिरफ्तार कर लिया जाय और सल्तनत को अपने ताबे कर लिया जाय" “बूढ़े ने कहा, "हजरत शाहजादा, याद रखिए कि जला- लुद्दीन अकबर का तख्त मुग़लों का है, ईरान की एक अनजान औरत का नहीं, "और भुग़लों के खून में हमारा राजपूती खून मिल चुका है, शाहजादा इसलिए उनके लिए हम अपना खून बहा सकते हैं। मगर एक मनमानी औरत के लिए नहीं। यह मेरी राय नहीं, जोधपुर, जयपुर, उदयपुर, बूंदी, सभी के राजपूत सर- दारों की राय है। "तो आप सब लोगों की यही राय है ?" "हम बचन देते हैं "तो दोस्तों, मुझे मुँजूर है। मैं आपसे बाहर नहीं, आज भी मगर मैं चाहता हूँ कि कोई भारी कदम उठाने से पेश्तर एक मौका दिया जाय । इस वक्त बादशाह को सिर्फ खबरदार कर दिया जाय ! फिर लड़ना ही है तो खुलकर लड़ा जायगा।" सवने कहा, “खैर, यही सही,” और सभा बर्खास्त हुई। बादशाह जहाँगीर और नूरजहाँ की शाही सवारी फतहपुर सीकरी आई हुई है, इससे इस सोए हुये शहर में जागने के चिन्ह देख पड़ते हैं। सूनी और जनहीन गलियों में सिपाही घोड़े, हाथी, प्यादे और खोजे गुलाम अपनी अपनी धुन में इधर से उधर आ जा रहे हैं। राजप्रासाद के बाहरी विशाल ऑगन में उदू हैं । वहाँ बहुत से डेरे, तम्बू, दूकानें हैं। मोची,