पृष्ठ:लालारुख़.djvu/४३

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सोया हुआ शहर तमोली, कसाई, घसियारे, धोबी, हम्मामी, नानबाई अपने अपने काम में लगे हैं। सौदे सुलफ का बाजार गर्म है । हजरत बादशाह सलामत का डेरा मरियम के महल में पड़ा है। लोगों का कहना था कि यही महल बड़े बड़े रहस्यों और आश्चर्यों का खजाना है। यहाँ मृत बादशाह अकबर और उनकी प्यारी वेशम मरियम की आत्मा रात को विचरण करती है। लोगों ने इस महल से रात के समय अनेकों प्रकार की आवाजे आती सुनी हैं, और भांति भांति के शब्द सुने हैं। बहुत लोग इसे भूतों का अड्डा समझते हैं। बहुत इसे विद्रोही षड़यन्त्रकारियों का अड्डा कहते हैं। बादशाह जहाँगीर ने वेगम नूरजहाँ की सलाह से इसी में अपना डेरा जमाया है। जल्दी में जितना साफ हो सकता था इसे साफ करके धारास्ता किया गया है। नीचे बादशाह का डेरा है, ऊपर की मंजिल में बेगम का। महल के भीतर तातारी बांदियों और खानजादी का कड़ा पहरा है। और बाहर अहदियों का जिनकी सरदारी बादशाह के लायक साले और नूरजहाँ के भाई आसफ जाह स्वयं बड़ी तत्परता से कर रहे हैं। बादशाह बहुत मौज में हैं । महल के प्रांगण में जो फब्बारा चल रहा है उसके पास वाली संगमरमर की चौकी मसनद पर लगी है जहाँ उनको प्यालों की मजलिस जुड़ी है । इस मजलिस में जिन्हें आने का अधिकार है वे जमे बैठे हैं। बादशाह अपने हाथ से उन्हें प्याले देते जा रहे हैं, और वे लोग बार बार कोनिस करके अदब से ले लेकर पीते जा रहे हैं। धीरे धीरे सब की आँखों में सरूर की लाली छा गई, जबान बहक गई