पृष्ठ:लालारुख़.djvu/४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चतुरसेन की कहानियाँ और अदब गायब हो गया। बादशाह वहीं मसनद के सहारे उदक कर सो गये और दरबारों लोग चुपचाप उठकर अपने अपने डेरों पर चले गये। गुलाम बादशाह को ख्वावगाह में ले गये। अकस्मात बादशाह किसी अज्ञात् वेदना से चीख उठे। आँख खोलकर देखा, पहिले तो कुछ समझ न पड़ा। वे बारंबार ऑखें बन्द करने और खोलने लगे। वे स्वप्न देख रहे हैं या जागा रहे हैं, यह उन्हें समझ न पड़ा। उन्होंने देखा एक अपरिचित छोटे से किन्तु सुसज्जित कद में वे बन्दी के तौर पर बैठे हैं। उनके पीछे दो कद्दावर गुलाम नंगी तलवार लिए खड़े हैं। सामने एक रत्न जटित सिंहासन है, उस पर एक षोड़शी बाला रत्न जटित पोशाक पहिने रुआब से बैठी है। वह घूर-चूर कर तेज आँखों से बादशाह की ओर देख रही है। उसके तेज से दैदीप्यमान चेहरे की तरफ आँखें नहीं टहरती हैं। एक पास खड़े गुलाम की ओर देख कर, बाद- शाह की ओर उँगली उठा कर रमणी ने कहा, 'यह तुम किसे ले आये हो, इब्राहीम ? "सरकार, यह हिन्दुस्तान का वही शराबी और ऐयाश बादशाह है।" "इसका क्या कसूर हैं, जो हमारे हुजूर में इसे हाजिर किया गया है ? "पहिली बात तो यह कि यह शराबी और ऐयाश है " "और "और इसने एक परदेसी औरत के ऊपर तख्तो ताज का