पृष्ठ:लालारुख़.djvu/४९

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सोया हुआ शहर “जी नहीं" "खैर तो आसफ कहाँ है ?" “हुजूर ड्योढ़ियौं पर हाजिर है।" "बुलाओ उन्हें ” शाहजादा के इशारे पर एक खोजा उन्हें बुला लाया। बादशाह बोले "आसफ, इस मकान पर पहरा किसका था?" "मैं खुद रात भर जाग कर पहरा देता रहा हूँ और ५०० सिपाही महल की निगरानी पर तैनात हैं।" "तुम कह सकते हो कोई बाहरी आइमो भोत्तर नहीं आया, “जी नहीं। "तुमने भीतर कोई चहलपहल मी नहीं देखी ?" "जहाँपनाह के सो जाने के बाद नहीं।" "तुम कह सकते हो मैं तमाम रात सोता रहा?" “जी हाँ हुजूर मैं कई बार देख गया हूँ।" "और वेग़म भी 7 "जहाँ तक मेरा ख्याल है जहाँपनाह बेगम अपने ख्वाब- गाह में सोती रही हैं। बादशाह और बेगम ने एक दूसरे की ओर देखा और बादशाह सोच में पड़ गये। "खूब किया ताज, तुम तो मलिका के रूप में जच गई। और सवाल भी किस शान से किये।" "और तुमने भी खूब शाहजादा खुर्रम का स्वाँग भरा, युसुफ आह, उन कपड़ों में तुम अँचते थे, मजा आ गया। E