पृष्ठ:लालारुख़.djvu/५०

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चतुरसेन की कहानियाँ "और तुम, प्यारी ताज, वाह, क्या शान थी।" "मगर यह तो कहो, यह नाटक किस लिये खेला गया ?" "दिल्लगी थी। इसके भीतर कुछ राज की बातें हैं।" "अब्बा को पता लगेगा तो, क्या कहेंगे?" "पर पता कैसे लगेगा, उनसे कहेगा कौन ?" "खैर, तो क्या सचमुच वही दोनों बादशाह और बेगम जहाँ थे, "और नहीं तो क्या " "जो उन्हें हमारी इस वेअदबी का पता लग जाये तो" "पर पता कैसे लगे?" "यह नाटक खेला क्यों गया?" "सिफ बादशाह को होशियार करने के लिये" "इससे क्या होगा? "बादशाह ने यह तो देख लिया कि ऐसी भी एक ताकत है उससे भी जवाब तलब कर सकती है। अब अगर बादशाह डे तो शाहजादा खुर्रम बगावत करेंगे !" "क्या वे बहुत खुबसूरत हैं ?" "देखोगी तो रीझ जाओगी।" "हटो मैं तुम से नहीं बोलती "अच्छा कहो शाहजादे को देखना चाहती हो?" "चाहती तो हूँ, देखू तो शैतान कैसा होता है " "देखकर रीझोगी तो नहीं ?" "फिर वही बात "अच्छा उस बात को जाने दो, पर अगर वह शैतान ही पर रीझ जाय और तुमसे शादी करने की दवस्ति करे ?" ४२