पृष्ठ:लालारुख़.djvu/५६

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नूरजहाँ का कौशल [ जैसे मुग़ल सम्राट् जहाँगोर पृथ्वी पर अपनी समता नहीं रखता वैसे ही साम्राज्ञी नूरजहाँ की भी समता नहीं है । सम्राट् जहाँगीर जैसा प्रतापी बादशाह प्रेम के राज्य में एक निरीह भावुक घुरुप था। इसके विपरीत साम्राज्ञी नूरजहाँ का मात्र साम्राज्ञी क्लियापेट्रा और एलिजावेथ से भी बडा चड़ा था। इस कहानी में इस प्रेमी शाही कबूतर-कबूतरी के जोड़े का एक मनोरंजक रेखा चित्र है । जहाँ राजनीति और तत्कालीन साम्राज्य की खटपटों में उलझा मुलभा प्रेम का अटपटा व्यापार चलता दीख पड़ता है। कहानी में साम्राज्ञी नूरजहाँ की- १ सन् १६२५ का अन्त हो रहा था। दिल्ली के तख्त पर मुग़ल-सम्राट् जहाँगीर बैठकर निश्शंक सुरा, संगीत और सुन्दरी सेवन में जीवन का मध्य भाग सार्थक कर रहे थे, और रूप, गर्व और प्रतिहिंसा की देदीप्यमान मूर्ति, ईरान के एक साधा- रण सावंत प्रायश की कन्या, बादशाह के मन्त्री आसक की बहन तथा शेर अमरान की विधवा महरुन्निसा मलिका नूरजहाँ के नाम से उदय होकर उस इन्द्रिय-परायण मुग़ल-सम्राट् और अमूल्य रत्नों से परिपूर्ण मुग़ल-तखत को अपने स्वेच्छाचारी पदाघात से हिला रही थी। छोटे और बड़े अमीर-उमरा से लेकर साधारण प्रजाजन