पृष्ठ:लालारुख़.djvu/६३

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नूरजहाँ का कौशल आसफ के चले जाने पर बाहशाह ने कहा -"नूरजहाँ, सल्तनत के इतने बड़े उमराव की इस कदर बेइज्जती करना क्या ठोक हुई ?" "बिल्कुल ठीक है जहाँपनाह, इससे पहले उसने एक खत अपने दामाद के हाथ भेजा था।" "उसमें क्या लिखा था?" "वह हुजूर के सुनने काबिल नहीं " "तुमने क्या जवाब दिया ?" "कुछ नहीं, इसके दामाद का सिर मुंडा, गधे पर सबार कराकर महावत के पास भेज दिया।" "श्रो ! नूर, जो चाहे सो करो, एक प्याला शीराजी मिलाकर दे दो। कलेजा जैसे निकला जा रहा है।" ५ हिंदु-कुलपति महाराणा उदयपुर के अपने निवास में बैठे कुछ परामर्श कर रहे थे। द्वारपाल ने सूचना दी-"मुग़ल- सेनापति महावतखाँ आए हैं।" महाराणा ने आश्चर्य से देखकर कहा-“उन्हें आदर-पूर्वक ले आओ सेनापति का अचानक आ जाना राणा के लिये आश्चर्य की बात थी। महावतखाँ ने आकर राणा को प्रणाम किया। राणा ने सादर स्वागत करके पुछा--"सेनापति, यों अचानक बिना सूचना दिए कैसे आ गए महावतखाँ ने कहा-"मैं सेनापति नहीं हूँ राणा साहब !"