पृष्ठ:लालारुख़.djvu/६४

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चतुरसेन की कहानियाँ राणा ने हँसकर कहा--समझ गया, अब आप बंगाल के सूबेदार हैं। "वह भी नहीं महाराणा!" "यह क्या! तब अब आप क्या हैं ?" "कुछ नहीं, सिर्फ महावतखाँ, एक पुराना सिपाही, जिसकी रगों में राजपूतों का रक्त है, पर जो शरीर से मुसलमान है।" महाराणा ने चिंतित होकर कहा-"क्या बात है खाँ साहब ? खैराफियत तो है ? “सव खैराफियत है राणा साहब, मैं सिर्फ एक नौकरी की खोज में आपके यहाँ आया हूँ। यदि एक सेनापति का पद आपकी अधोनता में मुझे मिले, तो मैं आशा करता हूँ कि मैं उसका अपमान न करूंगा।" "मैं अभी श्रापको सारी मेवाड़ की सेना का सेनापति बनाता हूँ !" "महाराणा की जय हो। मेरी एक अर्जी और है।" "कहिए? "मैं कुछ तनख्वाह पेशगी लेना चाहता हूँ " राणा हँस पड़े । बोले-"क्या चाहिए ? "सिर्फ पाँच हजार चुने हुए सवार और छ महीने की छुट्टी" “यह कैसी तनख्वाह है खाँ साहब ?" "शायद महाराणा को मंजूर नहीं।" "मंजूर है। आप सैनिकों को स्वयं चुन लीलिए। अगर हर्ज न हो, तो बता दीजिए कि सवारों का क्या कीजिएगा?" कुछ नहीं, जहाँपनाह से जरा मुलाकात करूँगा। मैं मिलने । 4