पृष्ठ:लालारुख़.djvu/६५

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नूरजहाँ का कौशल गया था, मुलाकात नहीं हुई। दामाद को खत लेकर भेजा, तो उसका सिर मुंडाकर गधे पर सबार कराया गया। अब जरा एक बार बादशाह से मिलना जरूरी है। फिर जिंदगी-भर आपके चरणों का दास रहूँगा।" राणा ने गंभीर होकर कहा-"मैं वचन दे चुका । मुझे कुछ आपत्ति नहीं महाबतखाँ ने उच्च स्वर से कहा-"महाराणा की जय हो।" ६ "उसके साथ मौज कितनी है , "सिर्फ पाँच हजार।" "और उस पर उसकी यह जुरत !" “बेगम साहबा, बादशाह और फौजदार उस पार हैं, और पुल पर महावतखाँ का कब्जा है।" "तब तुम तमाशा क्या देख रहे हो-पुल पर धावा बोल दो "पुल पर जाना नामुमकिन है !" "तब तैरकर पार जाओ।" "मलिका, यह खतरनाक है।" "धावा करो। महावत, हमारा हाथी दरिया में छोड़ दो। तीर और गोलियों की परवा नहीं। बादशाह सलामत दुश्मन के कब्जे में जाया चाहते हैं।" "बस, अब मार-काट बन्द करो। मुगल-सिपाहियो, हथि-