पृष्ठ:लालारुख़.djvu/६६

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चतुरसेन की कहानियाँ यार रख दो। फिजूल जाने मत दो। मुझे सिर्फ बादशाह मिलना है।" जहाँगीर ने खेमे से बाहर आकर कहा-"यह क्या है महावत ?" "जहाँपनाह, बन्दा हाजिर है।" "मामला क्या है ? यह लड़ाई कैसी ?" "कुछ नहीं हुजूर, जब मैंने देखा कि किसी तरह जहाँपनाह मुलाकात नहीं हो सकती, तो मजबूरन यह रास्ता अख्तियार करना पड़ा। "हमारी फौज कहाँ है ?" "सब उस पार है। पुल मैंने जला दिया है।" "समझ गया। महावत, मैंने तुम्हें माफ किया, अपनी फौज वापस कर दो। “हुजूर, ये लोग बिना मेरी ज़िन्दगी की जमानत लिए जाना नहीं चाहते। "इसका मतलब "मतलब यही कि महावतखाँ जहाँपनाह का पालतू कुत्ता नहीं कि जब आप चाहें 'तू' करके बुलावें, और वह दुम हिलाता हुआ चला आवे, आप जब लात मारकर दुतकार दें, तो दुम दबाकर भाग जाय।" बादशाह ने गुस्से होठ चबाकर कहा-"खैर, क्या जमानत चाहते हो ?" "यह फिर देखा जायगा, इस वक्त तो शिकार का वक्त हो गया है। तशरीफ ले चलिए "इस वच्च शिकार ? और मेरा घोड़ा?" "