पृष्ठ:लालारुख़.djvu/६७

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मूरजहाँ का कौशल "मेरा यह घोड़ा हाजिर है । "मलिका कहाँ है ? "वह महफूज जगह में हैं, उन्होंने दरिया में हाथी डाल दिया था, मेरे सिपाही उन्हें निहायत अदब से ले आए हैं।" "समझ गया। हम लोग तुम्हारे कैदी हैं ! "हुजू र, मैं इतनी गुस्ताखी तो नहीं कर सकता। मगर इतनी अर्ज जरूर है कि शाहंशाह अकबर के तख्त पर से इस वक्त जो ताकन हुकमत कर रही है, वह एक पागल और बेलगाम ताक़त है, उससे इंसाक तो हा ही नहीं सकता, अल. बत्ता यह तख्त मिट्टी में मिल सकता है। "तुम्हारी मंशा क्या है महावत ?" "एक बार मुलाकात किया चाहता था, आप तसरीक रखिए।" "अच्छी बात है, कहो किसलिए मुलाकात चाहते थे ? "हुजूर, मेरा एक मुक़दमा है।” "किसके खिलाफ?" "वह चाहे भी जिसके खिलाफ हो, मगर मैं से यह उम्मीद करता हूँ कि आप इंसाफ करेंगे। "मैं जरूर इंसान करूँगा। "मेरा मुकदमा मलिका साहबा के खिलाफ है ।" "क्या मुकदमा है ?" "उन्होंने शाहजादा खुशरू की हत्या कराई है।" "और 7 "किसी खास मतलब से वह हत्या उन्होंने शाहजादा खुर्रम के सिर मढ़ी है।"