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लेखाञ्जलि

भी अच्छा राज्य-प्रबन्ध कर सकते हैं। शिक्षा-दानहीको लीजिये। देखिये, हमने इसका जैसा अच्छा प्रबन्ध किया है, वैसा अच्छा प्रबन्ध आजतक आपसे किसी एक भी प्रतिमें करते नहीं बना। माइसोर, ट्रावनकोर और बड़ौदाकी रियासत ऐसी ही रियासतोंमें हैं।

शिक्षाके सम्बन्धमें बड़ोदेकी रियासतें कई बातोंमें हमारी सरकारसे आगे बढ़ी हुई है। इसका एक उदाहरण सुनिये—

बड़ौदेमें एक बहुत बड़ा पुस्तकालय राज्यकी ओरसे संस्थापित है। उसकी स्थापना हुए बहुत समय हुआ। उसके नियम निर्दिष्ट करने और उसे सुव्यवस्थित रीतिपर चलानेके लिए महाराजा बड़ोदाने एक अनुभवी कर्मचारी अमेरिकासे बुलाया था। उसकी अधीनतामें रहकर अब तो कई भारतवासी भी उस कामको सीख गये हैं। ये अब पुस्तकालयको बड़ी योग्यतासे चला रहे हैं। उसका एक महकमा ही अलग कर दिया गया है। उसने बड़ौदा-राज्यके बड़े-बड़े गाँवों तकमें पुस्तकालय खोल दिये हैं और जहाँ पुस्तकालय नहीं खोले जा सकते वहां सफरी पुस्तकालयोंसे लाभ उठानेका प्रबन्ध कर दिया है। इससे छोटे-छोटे गाँवोंके निवासियोंके लिए भी ज्ञानार्जनका मार्ग सुलभ हो गया है। पुस्तकालयोंकी बदौलत पुस्तकावलोकनसे कितनी ज्ञानवृद्धि हो सकती है, उसे बतानेकी जरूरत नहीं। खेद है, इस तरहका प्रबन्ध अंग्रेजी शासनके अधीन रहनेवाले भारतवासियोंके लिए सुलभ नहीं।

बड़ौदेके इस पुस्तकालय-विभागने कुछ समयसे देहातियोंके लाभके लिए एक और भी काम आरम्भ कर दिया है। इस कामसे