स्टीरियोग्राफ, मैजिक लेनटर्न स्लाइड और सीनामेटोग्राफ फिल्म—इन चार प्रकारके चित्रोंके द्वारा देहातियों को शिक्षा देती है। उसके पास दो सीनिमा मैशीनें, तीन बिजलीकी मैशीनें, दो मैजिक लैनटर्न और एक रेडियोपटिकन नामकी मैशीन—इतनी कलें हैं। इनके सिवा ५० स्टीरियस्कोप और उनकी सहायतासे दिखानेके लिए कोई ५ हजार चित्र हैं। आठ-सौके लगभग मैजिक लैनटर्नके स्लाइड और कोई एक-सौके लगभग सीनामेटोग्राफ फिल्म हैं। इन्हीं चित्रों और मैशीनों आदिके द्वारा बारी-बारीसे सारे राज्यके देहातियों का मनोरञ्जन और ज्ञानवर्धन किया जाता है। सुनते हैं, १९१८-१९१९ ईसवीमें डेढ लाखसे भी अधिक लोगोंने इस शिक्षासे लाभ उठाया।
इस कामके लिए दो इन्स्पेक्टर नियत हैं। वे राजकीय पुस्तकालयके अधिकारियों की मातहतीमें काम करते हैं। एककी तनख्वाह ३० से ५० रुपये तक और दूसरेकी ६० से १०० रुपये तक है। ये लोग चित्रों द्वारा शिक्षा देनेका भी काम करते हैं और देहाती पुस्तकालयोंका निरीक्षण भी करते हैं। देहातमें गांव-गांव भेजी जानेवाली पुस्तकों (ट्रेवलिंग लाइब्रेरीज़) की देख-भाल भी ये लोग करते हैं। इनके पास जो चित्र रहते हैं उनके दृश्योंके वर्णन आदि इनके पास पुस्तकाकार रहते हैं। ये वर्णन सब गुजराती भाषामें हैं, क्योंकि यही भाषा राज्यके अधिकांश निवासियोंकी मातृभाषा है। जब ये लोग किसी गाँवमें पहुँचते हैं तब पास-पड़ोसके गांवोंको भी खबर भेज दी जाती है। और तमाशेके रूपमें शिक्षादान या लेक्चरका समय बता दिया जाता है। बस, समयपर झुण्डके झुण्ड लोग बच्चे,