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जापान और भारतमें शिक्षाका तारतम्य

संख्या २४ करोड़ ७० लाख है और जापानकी सिर्फ ६ करोड़ २ लाख। अर्थात् जापानकी अपेक्षा भारतकी आबादी चौगुनीसे भी अधिक है। यदि स्कूल जाने योग्य उम्रके बच्चोंकी संख्या फ़ी सदी १५ मान ली जाय तो भारतमें ऐसे बच्चोंकी संख्या ३ करोड़ ७ लाख और जापानमें ९० लाख होती है।

अब आप यह देखिये कि इन दोनों देशोंमें मदरसे, मकतब, स्कूल और कालेज कितने हैं। इनमें आप विश्वविद्यालयोंको भी शामिल समझिये। इन सब प्रकारके शिक्षालयोंकी संख्या भारतमें तो २,२८,२२९ है, और जापानमें केवल ४४,३५५। इसका यह अर्थ हुआ कि जापानकी अपेक्षा भारतमें शिक्षाके साधन पांच गुने अधिक हैं। इन बातोंको ध्यानमें रखकर आप यह देखिये कि इन शिक्षालयों में दोनों देशोंमें, कितने छात्र शिक्षा पाते हैं। भारतमें इनकी संख्या केवल ९८ लाख, पर जापानमें १ करोड़ १० लाख है! देखा आपने! भारतकी आबादी जापानसे चोगुनी और शिक्षालय वहां की उपेक्षा पँचगुने हैं। पर यहांके मुक़ाबले में जापानमें कोई दस लाख बच्चे अधिक शिक्षा पा रहे हैं। जिन बच्चोंकी उम्र स्कूल जाने योग्य है उनमेंसे जो बच्चे यहाँ सब तरहके स्कूलों में शिक्षा पा रहे हैं उनका औसत आबादीके लेहाज़से, फ़ी सदी ४ से भी कम है। परन्तु जापानमें वही १९ फ़ी सदी है। इससे यह सूचित हुआ कि भारतमें जहाँ १५ बच्चोंको स्कूल जाना चाहिये था वहाँ केवल ४ जाते हैं और बाकीके ११ या तो मवेशी चराते या गिल्ली-डंडा खेला करते हैं। इस दशामें यहां मूर्खता और निरक्षरताका साम्राज्य न छाया रहे तो कहाँ रहे। शिक्षा ही सार