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लेखाञ्जलि

स्कूलसे सम्बद्ध परीक्षागारमें मेजर चोपड़ाकी सहायताके लिए केवल एक ही रसायन-शास्त्री है। इस दशामें ओषधि-सम्बन्धी काम नाम लेने योग्य भला कैसे हो सकता है।

किसी ओषधिकी परीक्षाके लिए पहले इस बातका पता लगानेकी ज़रूरत है कि उसमें कौन-कौनसे रासायनिक द्रव्य हैं। यह बात अच्छे-अच्छे यन्त्रों और परीक्षाओंसे ही सम्भव है। यह काम सुदक्ष रसायनज्ञ ही कर सकता है। विश्लेषण और पृथकरण द्वारा द्रव्योंका पता लग जानेपर उनके प्रयोगकी परीक्षा आवश्यक होती है। किस रोगमें वह कितना काम दे सकती है, इसकी जांचके लिए बहुत समय, योग्यता और धैर्य्य की ज़रूरत होती है।

तीन मुख्य अभिप्रायोंको ध्यानमें रखकर देशी ओषधियोंकी परीक्षा और प्रयोगकी आवश्यकता है, यथा—

(१) परीक्षा और प्रयोगके द्वारा इतनी ओषधियाँ निश्चित कर लेना चाहिये जिससे इस देशको उनके लिए और देशोंका मुँह न ताकना पड़े। फिर उन ओषधियोंको व्यावसायिक ढँगपर खिलाने और पिलाने लायक बना लेना चाहिये।

(२) वैद्य और हकीम जिन रोगोंमें जो ओषधियाँ देते हैं उनकी जाँच करके यह निश्चय कर लेना चाहिये कि उनमेंसे कौन-कौन ओषधि गुणकारी है और किसके विषयमें वैद्यों तथा हकीमोंका दावा ठीक नहीं। फिर जो ओषधियाँ परीक्षामें पूरी उतरें, उनका प्रचार पश्चिमी देशोंके डाक्टरों-द्वारा किये जानेको चेष्टा करनी चाहिये।

(३) ओषधियाँ इस तरह तैयार की जायँ कि लागत कम पड़े।