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देशी ओषधियोंकी परीक्षा और निर्माण

सस्ती होनेहीसे सब लोग उन्हें मोल ले सकेंगे और अधिक आदमियोंको उनसे फायदा पहुँच सकेगा।

सैकड़ों जड़ी-बूटियाँ यहाँ ऐसी उत्पन्न होती हैं जिनके गुण-धर्म्मों से पूर्वी और पश्चिमी देशोंके डाक्टर अच्छी तरह परिचित हैं। उनमेंसे कुछ विदेशोंको भेजी जाती हैं। वहाँसे उनकी दवाएँ तैयार होकर जब यहाँ आती हैं तब एक पैसेकी चीज़के डेढ़ दो रुपये देने पड़ते हैं। यदि ये सब ओषधियाँ यहीं तैयार की जायँ तो लाखों रुपये देशहीमें रहें और हज़ारों आदमियोंकी जीविकाका द्वार खुल जाय। फिर सैकड़ों जड़ी-बूटियाँ वहाँ जगह-की-जगह सूख जाती हैं, कोई उन्हें पूछता भी नहीं। इस तरह देशका अनन्त धन योंही नष्ट हो जाता है। कुछ जड़ी-बूटियाँ और पौधोंकी उत्पत्तिका उल्लेख, उदाहरणके तौरपर, नीचे दिया जाता है—

शिमलासे काश्मीर तक, हिमालय पर्वतपर, अङ्गूरीशफा उत्पन्न होता है। खुरासानी अजवान भी हिमालयपर होती है। इस देशके उष्ण प्रदेशोंमें इतना कुचला पैदा होता है जिसकी सीमा नहीं। यह कुचला बड़े काम आता है। कोई दवाखाना ऐसा न होगा जहाँ इससे बनी हुई ओषधियाँ न काममें लायी जाती हों। धतूरा तो सभी कहीं पाया जाता है। मालती सिन्धमें और पेशावरके आस-पास, इन्द्रायण सीमाप्रान्त और पञ्जाबमें, और जङ्गली प्याज़ तो सभी कहीं अधिकतासे उगती है। इसी तरह और भी अनन्त ओषधियाँ ऐसी हैं ओ जङ्गलों, पहाड़ों, घाटियों और तराइयोंमें गाड़ियों पैदा होती और अकारण ही नष्ट जाती हैं। इन सबकी परीक्षा होनी चाहिये और यह

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