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पृष्ठ:लेखाञ्जलि.djvu/१५४

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लेखाञ्जलि

देखना चाहिये कि किस मौसममें और कहाँकी कौन चीज़ एकत्र करनेसे उसके रासायनिक गुण कम नहीं होते। दूसरे देशोंमें उत्पन्न इन जड़ी-बूटियोंकी तुलना अपने देशकी जड़ी-बूटियोंसे करना चाहिये और यह देखना चाहिये कि अपनी देशज ओषधियोंमें यदि कुछ कमी है तो उसकी पूर्ति किस तरह हो सकती है। किसी विशेष आबोहवा, मौसम और भूमिमें उत्पन्न करनेसे इन बूटियोंके गुणधर्मकी कमी यदि दूर हो सकती हो तो जाँच और तजरुबेसे उसे दूर कर देना चाहिये।

कुछ ओषधियाँ विदेशसे ऐसी भी आती हैं जो इस देशमें नहीं पायी जातीं। पर उनसे मिलती-जुलती और ओषधियाँ ज़रूर पायी जाती हैं। जाँच करनेवालोंको रासायनिक प्रक्रिया-द्वारा अपनी ओषधियोंके गुण-धर्म्म का पता लगाना चाहिये और रसायन-शास्त्रके आधारपर यह निश्चय करना चाहिये कि अमुक ओषधिमें अमुक तत्त्व हैं। विश्ल्लेषण करके उनकी मात्राका निर्देश कर देना चाहिये। यदि वैसी ही ओषधियाँ अन्य देशोंसे यहाँ आती हों तो उनकी जगह अपनी देशज ओषधियोंके प्रयोगकी सिफारिश करना चाहिये। वैज्ञानिक प्रणालीसे गुण-धर्मका निश्चय हो जानेपर डाक्टर लोग झख मारकर उनका प्रयोग करेंगे, क्योंकि वे सस्ती पड़ेंगी। जानबूझकर कोई अपना रुपया क्यों व्यर्थ बरबाद करेगा? विदेशी दवा जालप (Jalap) में जो गुण हैं, वही प्रायः कालादानामें हैं। जो बात भार्ङ्गीमें है वही क्वासिया (Quassia) में। चीन और जापानसे जो पेपरमिट तेल आता है वही यहाँके पुदीनेसे तैयार किया जा सकता है। परन्तु जब-तक वैज्ञानिक ढंगसे इन ओषधियोंके गुण-धर्म्म का निश्चय करके यह