पृष्ठ:लेखाञ्जलि.djvu/१५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४६
देशी ओषधियोंकी परीक्षा और निर्माण

योरप और अमेरिकाके व्यवसायी यहाँसे कौड़ी मोल ले जाते हैं। हज़ारोंकोस दूर-देशोंमें जाकर इन्हीं चीज़ोंसे बनी हुई ओषधियाँ जब फिर भारतको लौटती हैं तब उनके दाम कौड़ियोंके बदले मुहरोंमें देने पड़ते हैं।

इस विवेचनसे यह बात ध्यानमें आ जायगी कि देशहीमें ओषधि-निर्माण होनेसे देशको कितना लाभ पहुँच सकता है। इसकी सिद्धिके लिए अनेक परीक्षागारों, अनेक रसायन-विशारदोंकी सहानुभूति और सहायता, तथा बहुत धनकी आवश्यकता है। देशभक्तों, व्यवसायियों और धनवानोंका धर्म है कि वे इस ओर ध्यान दें और मेजर चोपड़ाके हृद्‌गत विचारोंको कार्य्यमें परिणत करनेकी चेष्टामें लगे।

[जुलाई १९२३]