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पृष्ठ:लेखाञ्जलि.djvu/१५८

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१७—देहाती पञ्चायतें।


पञ्चायतें इस देशकी बहुत पुरानी संस्थाएं हैं—इतनी पुरानी जितनी कि शायद हमारे वेद भी न हों। एकत्र होकर मनुष्य जब एकही जगह रहने लगते हैं तब, स्वभावके वैचित्र्य या भेदभावके कारण, झगड़े-बखेड़े अवश्य ही होते हैं—सबल निर्बलको अवश्य ही, कभी-कभी, सताने लगते हैं। सभ्यताकी प्रारम्भिक अवस्थामें न तो कोई राजा ही होता है और न कोई न्यायालय ही होता है। अतएव आपसके झगड़ोंका फैसला यदि कोई कर सकता है तो बस्तीके प्रमुख मनुष्यही कर सकते हैं। इसीसे विद्वानोंका कथन है कि पञ्चायतें भारतवर्षकी अत्यन्त प्राचीन संस्थाएं हैं। उनका अस्तित्व अबतक लोप नहीं हुआ। अबतक भी प्रायः प्रत्येक गांवमें—हम अपने सूबेकी कहते हैं—कोई-न-कोई जगह ऐसी निश्चित रहती है जहाँ सबलोग, आवश्यकतानुसार, शामको एकत्र होते और आपसी झगड़ोंको आपसहीमें तै कर लेते हैं। इन