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देहाती पञ्चायतें

लिए काफ़ी न होगी तो वह मुक़द्दमेकी रिपोर्ट ज़िलेके हाकिमको कर सकती है। इस हालतमें मुक़द्दमा पञ्चायतसे उठकर सदरमें, या किसी ऐसी अदालतमें जो उसे सुननेका अधिकार रखती हो, चला जायगा।

पंचायतोंमें सबसे बड़ी बात यह है कि इनसाफ़ करनेकी सारी ज़िम्मेदारी पञ्चोंपर छोड़ दी गयी है। पञ्चायत ऐक्टमें जो कुछ लिखा है उसे छोड़कर पञ्चायतें और किसी क़ानूनकी पाबन्द नहीं। इसीसे पञ्चायतोंको हिदायत है कि धर्म और ईमानको वे हाथसे न जाने दें। शहादतकी वे वहींतक परवा करें जहाँतक कि धर्म्म, न्याय या इनसाफ़ उन्हें इजाज़त दें। जिस मामलेकी सचाईकी वे क़ायल हैं उसे, झूठी शहादतों के आधारपर, वे झूठ न समझ लें; क्योंकि पञ्चायतोंके लिए क़ानून शहादतकी पाबन्दी लाज़िमी नहीं। पञ्चायतोंके पञ्च पास-पड़ोसकी हालत, मामलों-मुकद्दमोंकी असलियत और फ़रीकैनके चाल-चलन आदिसे पूरी जानकारी रखते हैं। अतएव उस जानकारीसे फ़ायदा उठाकर उन्हें दूधका दूध और पानीका पानी अलग कर देना चाहिये। यह बहुत बड़ी बात है। पर खेद है, इस तरहके पञ्च मुश्किलसे मिल सकते हैं, यह बात लेखक अपने निजके तजरुबेसे कह सकता है।

पञ्चायतोंके विशेषाधिकार।

अगर कोई पञ्चायत अच्छा काम करे, उसके सरपञ्च और पञ्च विशेष योग्य साबित हों, दरख़्वास्त देनेपर ज़िलेका हाकिम सिफ़ारिश करे तो गवर्नमेंट उस पञ्चायतके अधिकार बढ़ा सकती है। ऐसी पञ्चायतें—