पृष्ठ:लेखाञ्जलि.djvu/१७५

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१८—किसानोंका संघटन।


बिखरी हुई चीज़ोंकी व्यवस्था करना, उन्हें एक सूत्रमें बाँधना, नियमपूर्वक उन्हें किसी क्रमसे रखना सङ्गठन (सङ्घटन) कहाता है। संहित और समाहार शब्द जिस अर्थमें प्रयुक्त होते हैं उसी अर्थमें, आजकल, सङ्गठनका प्रयोग होता है। किसी कार्यविशेषकी सिद्धि अथवा किसी फल-विशेषकी प्राप्तिके लिए कुछ मनुष्योंका समुदाय यदि नियमानुसार परस्पर सम्बद्ध हो जाय—आपसमें मिल जाय अर्थात् एका कर ले—तो कहेंगे कि उन लोगोंने अपना सङ्गठन कर लिया—वे परस्पर गँठ गये। इस एके, इस सङ्गठन, इस गँठ जानेमें बड़ा बल है। जिन बिखरी हुई चीजोंका कुछ भी महत्त्व नहीं—जो छूनेसे भी टूटकर टुकड़े-टुकड़े हो जाती हैं—वही जब परस्पर गँठ जाती हैं तब उनमें अद्भुत शक्तिका सञ्चार हो जाता है। सङ्गठन-व्यवस्थाकी महिमाका विशेष ज्ञान यद्यपि हमें पश्चिमी देशोंहीकी बदौलत अधिक हुआ है और यद्यपि वहीं