उसका प्रबल प्रताप भी देखने में आता है, तथापि उसके महत्वसे भारतवासी न तो पहलेही कभी अनभिज्ञ थे और न आज-कल ही अनभिज्ञ हैं। पुराने पण्डितोंने लिख रक्खा है—
तृणैर्गुणत्वमापन्नैर्बध्यन्ते मत्तदन्तिनः
तृणके पतले-पतले टुकड़े उँगलीका झटका लगते ही खण्ड-खण्ड हो जाते हैं; परन्तु यदि गाँठकर उन्हींका मोटा रस्सा बना लिया जाता है तो मतवाले हाथीतक उससे बांधे जा सकते हैं और बाँध लिये जानेपर वे अपनी जगहसे तिलभर भी नहीं हट सकते।
सङ्गठनकी महत्ता और शक्तिमत्ताका यह हाल है कि उसकी कृपासे इंग्लिस्तानके मज़दूर अभी हालहीमें, ८ महीने तक, उस देशका, तथा उसके अधीनस्थ अन्य देशोंका भी, शासन कर चुके हैं। जो लोग हज़ारों हाथ गहरी खानोंके भीतर कोयला खोदते थे, जो लोग एंजिनोंमें ईंधन झोंकते थे, जो स्टेशनों और बन्दरगाहोंपर बार-बरदारी करते थे, जो बढ़ई, लुहार, मेमार आदिका काम करके अपनी जीविकाका निर्वाह करते थे उन्होंने सङ्गठन करके वहाँके शासनका सूूत्र बड़े-बड़े दिग्गज विद्वानों, नीतिनिपुणी, व्यवसायियों और लखपतियोंसे छीनकर अपने हाथमें कर लिया था।
उधर रूसको देखिये। वह बहुत बड़ा देश है। कई वर्ष पूर्व वहाँके जार-नामधारी राजेश्वरका आतंक वहीं नहीं, भू-मण्डलके अन्याय देशोंमें भी छाया हुआ था। उन्हीं सर्व-शक्तिमान् सत्ताधीश की सत्ताहीका नहीं, उनके वंशतकका, नामोनिशान मिटाकर, रूसके किसान और सैनिक अब स्वयं ही वहाँका शासन कर रहे हैं। यह