पृष्ठ:लेखाञ्जलि.djvu/१८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८०
लेखाञ्जलि

ज़िलेकी सभासे। ज़िलोंकी सभाएं इलाहाबादकी प्रधान सभासे सम्मिलित रहेंहीगी। प्रधान सभासे जो पुस्तकें, पत्रक या नोटिसें निकलें वे छोटीसे-भी-छोटी सभाके मेम्बरोंतक पहुँचे। कुछ इन्स्पेक्टर नियत हों जो समय-समय पर दौरा करके इस बातकी जाँच करें कि सभाएं और उपदेशक या एजण्ट अपना काम ठीक-ठीक करते हैं या नहीं।

ऐसा होजानेपर सारे प्रान्तके किसान एक सूत्रमें बँध जायँगे। फिर उन्हें उनके हक़ मिलते देर न लगेगी। विघ्न-बाधाएं फिर भी उपस्थित होंगी; परन्तु ३/४ जन-समुदायकी आवाज़के सामने १/४ समुदायके द्वारा उपस्थित किये गये विघ्न कितनी देरतक ठहर सकेंगे? एक बात और भी तो है। अवशिष्ट १/४ जनसमुदायमें भी तो बहुतसे लोग किसानोंके पृष्ठपोषक हैं।

हाँ, एक बात और भी विचारणीय है। सभाओंकी काररवाईमें अवैध-भाव ज़रा भी न घुसने पावे। व्याख्याता और एजण्ट जमींदारों और गवर्नमेंटके ख़िलाफ़ किसानोंको कभी उभाड़ने या उत्तेजित करनेकी चेष्टा न करें। किसानोंको वे केवल उनके हक़ोंका ज्ञान करा दें और सौम्य भाषामें वे यह बता दें कि किन बातों या किन-किन क़ानूनोंसे उन्हें कितना कष्ट है और किनकी किस तरह तरमीम होनी चाहिये। कोई क़ानून कितना ही कड़ा या अन्याय-सङ्गत क्यों न हो, जबतक उसमें तरमीम न हो जाय तबतक उसके अक्षर-अक्षरके पालनकी सलाह दी जाय और कोई बात ऐसी न की जाय जिससे किसानों और तअल्लुक़ेदारों या ज़मींदारोंमें परस्पर विरोध-भावकी उत्पत्ति या वृद्धि हो।