पृष्ठ:लेखाञ्जलि.djvu/१८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८१
किसानोंका सङ्घटन


किसानोंका सङ्गठन विधिपूर्वक और पूर्णभावसे करना सहज नहीं। वह बहुत कठिन है और बहुत बड़े ख़र्चका काम है। परन्तु जिस कामसे प्रांतकी तीन-चौथाई जन-संख्याक दुखदर्द दूर हो सकते और जिससे उनकी समृद्धि बढ़ सकती है वह उँगली उठा देने, दस-पांच लेख प्रकाशित कर देने या महीने पन्द्रह रोज़में, किसी जगह सौ-पचास किसानोंको जमा करके उन्हें उनके मतलबकी बातें सुना देनेसे हो भी नहीं सकता। यदि वे लोग अपढ़ और अशिक्षित न होते तो इस तरह भी थोड़ा-बहुत काम हो जाता। परंतु उनकी वर्तमान अवस्थामें इन उपायोंसे यथेष्ट लाभ नहीं हो सकता। यथेष्ट लाभ तभी होगा जब किसानोंका सर्वाङ्गीण सङ्गठन किया जायगा और उसकी सिद्धिके लिए बहुतसे देशभक्त सज्जनोंकी नियुक्ति की जायगी।

इसके लिए हज़ारों नहीं; शायद लाखों रुपया दरकार हो। अतएव पहले बाबू संगमलाल अगरवालेके सदृश कुछ परोपकारव्रती पुरुषोंको चन्देसे रुपया एकत्र करना चाहिये। जैसे-जैसे रुपया मिलता जाय वैसे-ही-वैसे अधिकाधिक कार्यकर्ताओंकी योजना की जाय और वैसे-ही-वैसे सङ्गठन-कार्यके क्षेत्रका विस्तार भी बढ़ाया जाय। पहले जिले-जिलेमें सभाएं खुलें, फिर तहसीलोंमें और उसके बाद देहातमें। इस प्रान्तमें ऐसे हजारों आदमी निकलेंगे जो अधिकारियों का इशारा पाते ही छोटे-छोटे और कभी-कभी व्यर्थके कामोंके लिए भी हजारों रुपया दे डालते हैं। उन्हें समझाने-बुझाने और सङ्गठनके कार्यका महत्त्व बतानेसे क्या यह सम्भव नहीं वे कि