रूसमें तो, पूर्वकालमें, दण्डाघात प्रेमका भी चिह्न माना जाता था। विवाहिता बधुएं अपने पतियोंसे हमींको पानेके लिए सदा लालायित रहती थीं। यदि स्वामी, बीच-बीच में अपनी पत्नीका, दण्ड-दान-नामक आदर न करता तो पत्नी समझती कि उसके स्वामीका प्रेम उसपर कम होता जा रहा है। यह प्रथा केवल नीच या छोटे लोगोंहीमें प्रचलित न थी, बड़े-बड़े घरोंमें भी इसका पूरा प्रचार था। बर्कले नामके लेखकने लिखा है कि रूसमें दण्डाघातोंकी न्यूनाधिक संख्याहीसे प्रेमकी न्यूनाधिकताकी माप होती थी। इसके सिवा स्नानागारों में भी हमारा प्रबल प्रताप छाया हुआ था। स्नान करनेवालोंका समस्त शरीर ही हमारे अनुग्रहका पात्र बनाया जाता था। स्टिफेंस साहबने इसका विस्तृत विवरण लिख रक्खा है। विश्वास न हो तो उनकी पुस्तक देख लीजिये।
हमारे सम्बन्धमें तुम अमेरिकाको पिछड़ा हुआ कहीं मत समझ बैठना। वहाँ भी हमारा प्रभाव कम न था। बालकों और बालिकाओंका गार्हस्थ्य जीवन कहाँ हमारे ही द्वारा नियन्त्रित होता था। प्यूरिटन नामके क्रिश्चियन-धर्मसम्प्रदायके अनुयायियों के प्रभुत्वके समय लोगोंको बात-बातमें कशाघातकी शरण लेनी पड़ती थी। क्वेकर-सम्प्रदायको देशसे दूर निकालनेमें अमेरिका निवासियोंने हमारी खूब ही सहायता ली थी। हमारा प्रयोग बड़े ही अच्छे ढङ्गसे किया जाता था। काठके एक तख़्तेपर अपराधी बाँध दिया जाता था। फिर उसपर सड़ासड़ बेत पड़ते थे।
अफ़रीकाकी तो कुछ पूछिये ही नहीं। वहाँ तो पहले भी हमारा