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प्राचीन कालके भयङ्कर जन्तु


पन्द्रह बीस कङ्काल एक पहाड़पर अध्यापक मार्शको मिले थे। इन कड़्कालों लोंके दांतोंकी बनावट देखकर विद्वानोंने निश्चय किया है कि ये जीवधारी वनस्पति-भोजी थे।

दाइनोसौर श्रेणीका एक और विलक्षण जन्तु ट्राइसरट्राप (Tricertrop) कहाता है। इस जन्तुकी मी ठठरियां पहाड़ों-पर मिली हैं। इसकी खोपड़ी कोई सात फुट लम्बी है और त्रिकोणावृत्ति है। खोपड़ीकी हड्डीमें भी विलक्षणता पाई जाती है। यहजन्तु कई वातोंमें दरियाई घोड़े और गैंडेसे मिलता-जुलता जान पड़ता है। किन्तु इसमें दरियाई घोड़ेसे एक विशेषता है। वह यह कि इसकी पीठकी हड्डीके टुकड़े गोल हैं और इसके मस्तकपर तीन सींग हैं। इसका भी मस्तिष्क बहुत छोटा होता था। अध्यापक मार्शका मत है कि इसके अङ्गोंकी बनावट बहुत अस्वाभाविक होनेके कारण ही इसकी जाति नष्ट होगई। पशु-शालामें इस जन्तुके दो नमूने रक्खे गये हैं। एकमें यह जन्तु जलाशयके किनारे, पानीके भीतर, खड़ा दिखाया गया है। दूसरेमें वह पानीमें आधा डबा हुआ है।

दाइनोसौर श्रेणी के जन्तुओंकी उत्पत्तिके पहले पृथ्वीपर प्लेसिओसौरियन (Plesiosaurian) अर्थात् एक प्रकारकी सामुद्रिक छिपकलियोंका निवास था। उनकी शकल-सूरत आधी मछली की और आधी सरीस्टपकी थी। उनकी गर्दन लम्बी होती थी और सिर छिपकली के सिरकी तरहका। दाँत घड़ियालके दानोंसे मिलते-जुलते थे। डैने ह्वेल के डैनोंके समान होते थे। वे जलके